बैंकिंग प्रणाली की लिक्विडिटी तीन वर्षों में पहली बार घाटे में
बैंकिंग प्रणाली की लिक्विडिटी तीन वर्षों में पहली बार घाटे में चली गई। इंडिया रेटिंग्स द्वारा संकलित भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, 20 सितंबर, 2022 को नेट लिक्विडिटी इंजेक्शन 21,873.43 करोड़ रुपये था। इस तरह मई 2019 के बाद बैंकों के पास लिक्विडिटी (कैश) सरप्लस की स्थिति डेफिसिट में बदल गयी है।
आज से ठीक एक साल पहले (सितंबर 2021 में) बैंकिंग प्रणाली में शुद्ध अधिशेष तरलता (Net surplus liquidity) 8.03 लाख करोड़ रुपये थी।
लिक्विडिटी घाटे की कई वजहें हो सकती हैं
भारत की बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी घाटे की कई वजहें हो सकती हैं:
कोविड महामारी के बाद बैंकों से ऋण की मांग में वृद्धि हुई है और बैंकों ने अधिक ऋण वितरित किये होंगे।
ऋण की मांग के अनुपात में बैंकों में जमा नहीं आ रहे होंगे। अर्थात बैंक कर्ज अधिक दे रहे हैं लेकिन बैंकों में पैसा उसी अनुपात में कम जमा हो रहा है।
कॉरपोरेट्स ने अग्रिम कर भुगतान (एडवांस टैक्स पेमेंट) भी अधिक किया है। यह भी एक वजह है।
इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक भी कदम उठा रहा है। बैंकों में लिक्विडिटी कम होने की यह भी एक वजह हो सकती है।
क्या होती है बैंकिंग लिक्विडिटी (बैंकिंग तरलता)?
बैंकिंग प्रणाली में तरलता से मतलब आसानी से उपलब्ध नकदी या कैश से है जिसे बैंकों को अल्पकालिक बिजनेस और वित्तीय जरूरतों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।
किसी दिए गए दिन, यदि बैंकिंग प्रणाली तरलता समायोजन सुविधा ( Liquidity Adjustment Facility: LAF) के तहत RBI का एक शुद्ध उधारकर्ता (net borrower) है, तो कहा जाता है कि बैंकिंग सिस्टम तरलता घाटे (liquidity deficit) में है।
इसके विपरीत यदि बैंकिंग प्रणाली RBI के लिए एक शुद्ध ऋणदाता (net lender) है, तो सिस्टम तरलता सरप्लस कहा जा सकता है। LAF आरबीआई के उस ऑपरेशन्स को कहा जाता है जिसके माध्यम से यह बैंकिंग प्रणाली में नकदी डालता है या उससे नकदी निकालता है।
लिक्विडिटी घाटे के प्रभाव
बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी की कमी के कई प्रभाव हो सकते हैं। इस स्थिति में सरकारी प्रतिभूतियों की यील्ड में वृद्धि हो सकती है और बाद में उपभोक्ताओं के लिए ब्याज दरों में भी वृद्धि हो सकती है।