यूरोपीय संघ ने हंगरी को बताया “चुनावी निरंकुशता का एक हाइब्रिड शासन”
यूरोपीय संसद ने सितंबर 15 को एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें कहा गया है कि हंगरी अब “पूर्ण लोकतंत्र” नहीं है और यूरोपीय संघ को इसे यूरोपीय मूल्यों के अनुरूप वापस लाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।
यूरोपीय संघ की संसद में 433 सदस्यों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 123 ने इसकी खिलाफ मतदान किया।
हंगरी के प्रधान मंत्री विक्टर ओरबान का रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ घनिष्ठ संबंध है जो यूरोपीय संघ को परेशान कर रहा है क्योंकि यूरोपीय संघ का सदस्य होते हुए भी वह रूस के साथ खड़ा है। इसलिए प्रस्ताव में हंगरी को “चुनावी निरंकुशता का एक हाइब्रिड शासन” (a hybrid regime of electoral autocracy) की संज्ञा दी गयी है।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि हंगरी का शासन यूरोपीय संघ के लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार नहीं चलाये जा रहे हैं।
हालांकि यूरोपीय संघ की संसद में पारित इस प्रस्ताव का केवल सांकेतिक महत्व है और यूरोपीय संघ की संरचना और निर्णय प्रक्रिया पर इस वोट का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
किसी प्रस्ताव पर कार्रवाई, यहां तक की रूस पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए भी यूरोपीय संघ के सभी सदस्यों में एक मत होना जरुरी है।
अनुच्छेद 7 के अनुसार यूरोपीय संघ के नीति-निर्माण में एक सदस्य देश को उसके मतदान अधिकारों से वंचित तभी किया जा सकता है, जब यूरोपीय परिषद के सभी सदस्य एकमत से वोट दे।
पोलैंड और हंगरी, यूरोपीय संघ के सदस्य हैं और किसी प्रस्ताव पर एक-दूसरे का साथ देते हैं। अर्थात यदि हंगरी के खिलाफ प्रस्ताव लाया जाता है तो पोलैंड विरोध करता है और पोलैंड के खिलाफ प्रस्ताव का हंगरी विरोध करता है। इस तरह आम राय नहीं बन पाती है।
ऐसा माना जा रहा है कि पहली बार यूरोपीय संघ की संस्था ने घोषणा की है उसके सदस्य देश में लोकतंत्र उचित तरीके से काम नहीं का रहा है।