क्या है ‘मैरी रॉय मामला’?
शिक्षक और महिला अधिकार कार्यकर्ता मैरी रॉय (Mary Roy), जिनका 1 सितंबर को निधन हो गया, कानूनी जगत में “मैरी रॉय” मामले (Mary Roy case) के लिए सबसे अच्छी तरह से जानी जाती थीं।
यह वह मामला था जिसने लंबी कानूनी लड़ाई के बाद केरल के सीरियाई ईसाई परिवारों की महिलाओं के लिए संपत्ति में समान अधिकार सुनिश्चित किया।
रॉय, जिनका 89 वर्ष की आयु में कोट्टायम में निधन हो गया, मैन बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय की मां थीं।
अपने मृत पिता की संपत्ति में समान अधिकारों से वंचित, मैरी रॉय ने अपने भाई, जॉर्ज इसाक पर मुकदमा दायर कर दिया था। इस तरह उन्होंने एक ऐसे अभियान की शुरुआत की जिसे भारत में लैंगिक न्याय (gender justice in India) सुनिश्चित करने में एक मील का पत्थर के रूप में देखा जाता है।
त्रावणकोर उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, सीरियाई ईसाई समुदाय (Syrian Christian community) की महिलाओं को संपत्ति विरासत में पाने का कोई अधिकार नहीं था।
उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका में कहा गया कि त्रावणकोर उत्तराधिकार अधिनियम ने लैंगिक आधार पर भेदभाव करके संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1986 के फैसले में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925) की सर्वोच्चता को बरकरार रखा।
भारत के मुख्य न्यायाधीश पीएन भगवती और न्यायमूर्ति आरएस पाठक की एक पीठ ने फैसला सुनाया कि यदि मृतक माता-पिता ने वसीयत नहीं छोड़ी है, तो उत्तराधिकार का फैसला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के अनुसार किया जाएगा और यह पूर्ववर्ती त्रावणकोर राज्य में भारतीय ईसाई समुदाय पर भी लागू होगा।
इस फैसले ने सीरियाई ईसाई परिवारों में महिलाओं को विरासत में उनके सही हिस्से से वंचित करने स्वीकृत प्रथा को समाप्त कर दिया।
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 विरासत में लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं करता है।