भारत में “पुत्र पूर्वाग्रह” (son bias) में कमी आ रही है-प्यू रिसर्च सेंटर
प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के नवीनतम अध्ययन ‘जन्म के समय भारत का लिंग अनुपात सामान्य होना शुरू हुआ’ (India’s sex ratio at birth begin to normalise) में बताया गया है कि भारत में “पुत्र पूर्वाग्रह” (son bias) में गिरावट आ रही है क्योंकि देश में “लापता” बच्चियों (missing) की औसत वार्षिक संख्या 2010 में 480,000 (4.8 लाख) से गिरकर 2019 में 410,000 (4.1 लाख) हो गई है।
“लापता” का अर्थ है कि इस अवधि के दौरान महिला-चयनात्मक गर्भपात (female-selective abortions) न होने पर कितनी और बच्चियों के जन्म हुए होंगे।
समस्या की शुरुआत 1970 के दशक में प्रसवपूर्व निदान तकनीक की उपलब्धता के साथ हुई, जो लिंग के आधार पर गर्भपात की अनुमति देती है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं
रिपोर्ट के अनुसार भारत के प्रमुख धर्मों में, लिंग चयन में सबसे बड़ी कमी उन समूहों में रिकॉर्ड किया गया है, जिनमें पहले सबसे अधिक लैंगिक असंतुलन था, खासकर सिखों में। दुनिया भर में, लड़कों की संख्या जन्म के समय लड़कियों की संख्या से मामूली अधिक है, प्रत्येक 100 लड़कियों के जन्म की तुलना में 105 लड़कों का जन्म हुआ।
1950 और 1960 के दशक में भारत में यह अनुपात देश भर में प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण उपलब्ध होने से पहले था। भारत ने 1971 में गर्भपात को वैध कर दिया, लेकिन अल्ट्रासाउंड स्कैन तकनीक की शुरुआत के कारण 1980 के दशक में लिंग चयन का चलन शुरू हो गया।
1970 के दशक में, भारत का लिंगानुपात 105-100 के वैश्विक औसत के बराबर था, लेकिन 1980 के दशक की शुरुआत में यह बढ़कर प्रति 100 लड़कियों पर 108 लड़कों तक पहुंच गया, और 1990 के दशक में प्रति 100 लड़कियों पर 110 लड़कों तक पहुंच गया।
भारत की 2011 की जनगणना में प्रति 100 लड़कियों पर लगभग 111 लड़कों के बड़े असंतुलन से, जन्म के समय लिंग अनुपात पिछले एक दशक में थोड़ा सामान्य हो गया है, जो 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में कम होकर 109 हो गया है।
2019-21 से आयोजित एनएफएचएस की नवीनतम चक्र में प्रति 100 लड़कियों के जन्म पर लगभग 108 लड़कों का जन्म हुआ।
प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट बताती है कि 2000 और 2019 के बीच, महिला-चयनात्मक गर्भपात के कारण नौ करोड़ लड़कियों का जन्म “लापता” श्रेणी में थे।
रिपोर्ट में धर्म के आधार पर लिंग चयन का भी विश्लेषण किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सिखों के लिए यह अंतर सबसे अधिक था। वर्ष 2011 की जनगणना में, सिखों का लिंगानुपात प्रति 100 महिलाओं पर 130 पुरुषों का था, जो उस वर्ष के राष्ट्रीय औसत 110 से कहीं अधिक था। वर्ष 2011 की जनगणना तक, सिख अनुपात प्रति 100 लड़कियों पर 121 लड़का हो गया। नवीनतम एनएफएचएस के अनुसार, यह अब 110 के आसपास है, जो देश के हिंदू बहुसंख्यक (109) में जन्म के समय पुरुषों और महिलाओं के अनुपात के समान है।
अध्ययन बताता है कि जहां सिख भारतीय आबादी का 2% से कम हैं, वहीं 2000 और 2019 के बीच भारत में “लापता” होने वाली नौ करोड़ बच्चियों में से उनका अनुमानित हिस्सेदारी 5% या लगभग 440,000 (4.4 लाख) है।
यह अध्ययन भौगोलिक कारकों के आधार पर भारत को छह क्षेत्रों में विभाजित करता है – उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, मध्य और उत्तर पूर्व।
रिपोर्ट से पता चलता है कि उत्तर में – जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और लद्दाख शामिल हैं – जन्म के समय लिंग अनुपात कम हो रहा है और यह 2019-21 में हर 100 लड़कियों के लिए औसतन 111 लड़के हैं। वहीं वर्ष 2001 में प्रत्येक 100 लड़कियों के जन्म पर 118 लड़कों का जन्म हुआ था।
दूसरी ओर, पांच दक्षिणी राज्यों आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में यह अनुपात बढ़ गया है। वर्ष 2001 में प्रत्येक 100 लड़कियों के जन्म पर 106 लड़कों का जन्म हुआ। वर्ष 2019-21 में यह अनुपात 100:108 तक बढ़ गया। के अनुसार प्रत्येक 100 लड़कियों की तुलना में जन्म लेने वाले लड़कों की संख्या 2019-21 में पंजाब में 111 और हरियाणा में 112 में हो गई है। वर्ष 2001 में यह अनुपात लगभग 127 (दोनों में) था।