क्रोमोस्फीयर में पाये जाने वाले प्लाज्मा के जेट्स के पीछे कार्य करने वाले विज्ञान का पता चला
वैज्ञानिकों ने प्लाज्मा के जेट के पीछे के विज्ञान का पता लगाया है। प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था है, जिसमें विद्युत रूप से आवेशित कण मौजूद होते हैं और सूर्य के क्रोमोस्फीयर में हर जगह मौजूद रहते हैं। क्रोमोस्फीयर वायुमंडलीय परत है जो कि सूर्य की दिखाई देने वाली सतह के ठीक ऊपर होती है।
- ये जेट या स्पिक्यूल्स (Solar spicule), पतली घास जैसी प्लाज्मा संरचनाओं के रूप में दिखाई देते हैं जो सतह से लगातार ऊपर उठते रहते हैं और फिर गुरुत्वाकर्षण द्वारा नीचे लाए जाते हैं। इन स्पिक्यूल्स द्वारा ले जाई जा रही ऊर्जा की मात्रा और गति सौर प्लाज्मा भौतिकी में मौलिक रूचि है। जिन प्रक्रियाओं द्वारा सौर हवा को प्लाज्मा की आपूर्ति की जाती है और सौर वायु मंडल एक मिलियन डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है, यह अभी भी एक पहेली बना हुआ है।
- भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में खगोलविदों के नेतृत्व में भारत और इंग्लैंड के अंतर्विषयी शोधकर्ताओं की एक टीम ने प्रयोगशाला के प्रयोगों को एक समरूपता के रूप में उपयोग करते हुए सूर्य के ‘स्पिक्यूल्स’ की उत्पत्ति की व्याख्या की है। उन्होंने यह पाया कि एक स्पीकर पर संदीप्त होने पर पेंट जेट्स करने वाली भौतिकी सौर प्लाज़्मा जेट्स के समान ही है।
- वैज्ञानिकों ने विस्तार से यह बताया कि दिखाई देने वाली सौर सतह (फोटोस्फीयर) के ठीक नीचे प्लाज़्मा संवहन की स्थिति में होता है और निचली सतह पर किसी बर्तन में उबलते हुए गर्म पानी की तरह लगता है। इसे गर्म-घने कोर में परमाणु ऊर्जा द्वारा संचालित होता है। यह संवहन लगभग आवधिक होता है, लेकिन यह सौर क्रोमोस्फीयर में प्लाज्मा को मजबूती से उद्दीत करता है। यह क्रोमोस्फीयर दृश्यमान सौर डिस्क के ठीक ऊपर अर्ध-पारदर्शी परत है।
- स्पिक्यूल्स सभी आकारों और गति में आते हैं। सौर समुदाय में मौजूदा सर्वसम्मति यह रही है कि छोटे स्पिक्यूल्स के पीछे की भौतिकी लम्बे और तेज़ स्पिक्यूल्स के मुकाबले अलग है।