सुप्रीम कोर्ट ने बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध कानून की धारा 3 (2) को असंवैधानिक घोषित कर दिया
सर्वोच्च न्यायालय ने 23 अगस्त को बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 (Benami Transactions (Prohibition) Act, 1988) की धारा 3 (2) को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट के मुताबिक यह धारा स्पष्ट रूप से मनमानी है। कोर्ट ने कहा, बेनामी अधिनियम में 2016 में हुए संशोधन को पूर्वव्यापी रूप से (कानून लागू होने के वर्ष से पहले से) लागू नहीं किया जा सकता है।
इसके साथ ही न्यायालय ने बेनामी संपत्ति के लिए 3 साल की सजा के कानून को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति जब्त करने का अधिकार पिछली तारीख से लागू नहीं होगा। पुराने मामलों में 2016 के कानून के तहत कार्रवाई नहीं होगी।
यह फैसला केंद्र सरकार द्वारा 12 दिसंबर, 2019 के कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एक अपील पर आया है, जिसमें केंद्र द्वारा 2016 के अधिनियम के तहत एक कंपनी मेसर्स गणपति डीलकॉम प्राइवेट लिमिटेड के मालिकों को कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने भी यह माना था कि अधिनियम को पूर्वव्यापी रूप (retrospectively) से लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि कंपनी द्वारा विचाराधीन लेनदेन 2011 में एक संपत्ति की खरीद से संबंधित थी।
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम (Benami Transactions (Prohibition) Act, 1988) की धारा 3 (2) में कहा गया है कि जो कोई भी बेनामी लेनदेन में लिप्त है, उसे तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संबंधित अधिकारी वर्ष 2016 के अधिनियम, के लागू होने से पहले (5 सितंबर, 1988 से 25 अक्टूबर, 2016 के बीच की अवधि) किए गए (बेनामी) लेनदेन के लिए आपराधिक अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रख सकते हैं। उपर्युक्त घोषणा के परिणामस्वरूप, ऐसे सभी अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही रद्द हो जाएगी।
इस आलोक में, न्यायालय ने कहा कि वर्ष 1988 के अधिनियम की धारा 3 और 5 अपनी स्थापना से ही असंवैधानिक थे।
भारत के मुख्य न्यायाधीश, एन.वी. रमण ने 96-पृष्ठ का एक निर्णय लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि यह प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (1) का उल्लंघन करता है।
अनुच्छेद 20(1) के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को ऐसे अपराध या उल्लंघन के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए जो “कानून बनने से पहले दंडनीय अपराध नहीं था “।
बेनामी प्रावधान अधिनियम 2016 में धारा 5 है जिसमें कहा गया है कि “कोई भी संपत्ति जो बेनामी लेनदेन का विषय है, केंद्र सरकार द्वारा जब्त करने के लिए उत्तरदायी होगी।” सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि इस प्रावधान को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
यह निर्णय 2016 अधिनियम के तहत अभियोजन और जब्ती प्रक्रिया पर लागू नहीं होगा क्योंकि यह अदालत के समक्ष विचाराधीन नहीं था।
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988
बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 या 1988 बेनामी संपत्ति अधिनियम भारतीय संसद का एक अधिनियम है जो कुछ प्रकार के वित्तीय लेनदेन की अनुमति नहीं देता है।
यह अधिनियम एक ‘बेनामी’ लेनदेन को ऐसे किसी भी लेनदेन के रूप में लेबल करता है जिसमें किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भुगतान की गई राशि के लिए एक व्यक्ति को संपत्ति हस्तांतरित की जाती है।
कानूनी शब्दों में, इसका मतलब है कि कोई भी लेन-देन जिसमें संपत्ति एक व्यक्ति को भुगतान या प्रदान की गई राशि के लिए हस्तांतरित की जाती है, उसे ‘बेनामी लेनदेन’ कहा जाता है।
वर्ष 2016 में, सरकार ने बेनामी लेनदेन अधिनियम, 1988 में संशोधन किया और इसका नाम बदलकर बेनामी संपत्ति निषेध अधिनियम (PBPT), 1988 कर दिया। भारत में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए इसमें संशोधन किया गया। यह संशोधन नवंबर 2016 में लागू हुआ।