दिवेर का युद्ध क्या है?

केंद्रीय गृह मंत्री के अनुसार, भारत में इतिहास लेखन के दौरान पांड्य, चोल, मौर्य, गुप्त और अहोम जैसे साम्राज्यों की अनदेखी की गई थी। उन्होंने पूछा कि ऐसा क्यों है कि हल्दीघाटी की लड़ाई के बारे में बहुत से लोगों ने सुना है, लेकिन बहुतों को ‘दिवेर का युद्ध’ (Battle of Dewair) के बारे में पता नहीं था। उन्होंने कहा कि किसी युद्ध में जीत या हार इतिहास का आधार नहीं होती है, बल्कि ऐसी घटना का परिणाम जरूर इतिहास का आधार होता है।

दिवेर की पहली लड़ाई (First Battle of Dewair) वर्ष 1582 में महाराणा प्रताप और मुगल के बीच लड़ी गई थी।

युद्ध का वर्णन ब्रिटिश सेना अधिकारी और प्राच्य विद्वान लेफ्टिनेंट-कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक ‘एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ (Annals and Antiquities of Rajasthan) में किया है।

महाराणा ने दिवेर गांव में स्थित मुगल सैन्य केंद्रों पर हमला किया। दिवेर में मुगल कमांडर बहलोल खान ने मेवाड़ी सेना के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की।

एक भयंकर युद्ध हुआ, और बहलोल खान को प्रताप ने बेरहमी से मार डाला। उनकी मृत्यु से मुगल खेमे में खलबली मच गई और जल्द ही मुगल सैनिक युद्ध के मैदान से भागने लगे।

ऐसा कहा जाता है कि मेवाड़ी सेना ने मुगलों को बेरहमी से नष्ट कर दिया और हल्दीघाटी के नुकसान का बदला लिया।

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