जगतग्राम (Jagatgram): जहां से मिले हैं अश्वमेध अनुष्ठान के साक्ष्य
जगतग्राम (Jagatgram) गाँव देहरादून में 2,000 साल पुराना स्थल है, जो घोड़े की बलि या अश्वमेध के अनुष्ठान की प्राचीन प्रथा से जुड़ा है। यह राष्ट्रीय महत्व का एक स्मारक (monument of national importance) है।
- इस प्राचीन स्थल की खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा वर्ष 1952 – 54 के बीच की गई थी।
- जगतग्राम गांव अश्वमेध अनुष्ठानों के बारे में अधिक तथ्य रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों और अन्य प्राचीन ग्रंथों में प्राप्त होते हैं।
- जगतग्राम में तीन अग्नि वेदियों (three fire altars) के अवशेष प्राप्त हैं जहां घोड़े की बलि दी जाती थी।
- यहां की तीन अग्नि वेदियों के उत्खनन से पता चलता है कि वे चील के आकार की सायना चिति (eagle-shaped Syena Chiti) यानी उड़ते हुए चील के रूप में बनाई गई थीं, जहाँ पक्षी को उसके पंखों के फैलाव के साथ चित्रित किया गया है।
- विशेषज्ञों के अनुसार ऐसी वेदियां अत्यंत दुर्लभ हैं।
- पहली और पांचवीं शताब्दी ईस्वी के बीच, जगतग्राम और आसपास के स्थान जैसे हरिपुर और लाखमंडल वर्मन वंश के शासन में थे।
- पहली वेदिका पर मिले एक शिलालेख कहता है कि राजा शीलवर्मन, उर्फ युगसियाला के पोना (Pona of Yugasiala) , जो वृषगण गोत्र के थे, और माना जाता है कि उन्होंने तीसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान शासन किया था, उन्होंने यहां घोड़ों केचार बलिदान किए थे।
- तीसरी शताब्दी ईस्वी के दौरान मध्य हिमालय के कम से कम पश्चिमी भाग को युगसियाला (Yugasiala) के नाम से जाना जाता था। अखिल भारतीय संदर्भ में ऐसी वेदियां अत्यंत दुर्लभ हैं।
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