ड्राउट इन नंबर्स रिपोर्ट 2022
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UN Convention to Combat Desertification: UNCCD) पर पक्षकारों के 15 वें सम्मेलन (COP15) के दौरान, मई 2022 में कोटे डी आइवर के आबिदजान में “ड्राउट इन नंबर्स’ रिपोर्ट 2022 (Drought in Numbers report 2022) जारी की गयी। CoP15 का आयोजन 9 से 20 मई तक “भूमि, जीवन और विरासत: अभाव से समृद्धि की ओर’ (Land. Life. Legacy: From scarcity to prosperity) थीम की साथ आयोजित हुई।
ड्राउट इन नंबर्स रिपोर्ट 2022 के प्रमुख निष्कर्ष
- रिपोर्ट के अनुसार 1970 से 2019 तक, मौसम, जलवायु और जल संकट 50 प्रतिशत आपदाओं और 45 प्रतिशत आपदा से संबंधित मौतों के लिए जिम्मेदार थे, ज्यादातर विकासशील देशों में।
- जहां सूखा प्राकृतिक आपदाओं का 15 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार था वहीं इस अवधि के दौरान लगभग 650,000 मौतों का कारण बना।
- वर्ष 1998 से 2017 तक, सूखा लगभग 124 अरब डॉलर के वैश्विक आर्थिक नुकसान के लिए जिम्मेदार था और वर्ष 2000 के बाद से सूखा जनित नुकसान में 29 प्रतिशत के बढ़ोतरी हुई है।
- वर्ष 2022 में, 2.3 अरब से अधिक लोग पानी के संकट का सामना कर रहे हैं और लगभग 160 मिलियन बच्चे गंभीर और लंबे समय तक सूखे की चपेट में हैं।
- वर्ष 2000 और 2019 के बीच लगभग 1.4 अरब लोगों को प्रभावित करने वाले समाजों, पारिस्थितिक तंत्रों और अर्थव्यवस्थाओं पर सूखे का गहरा, व्यापक प्रभाव पड़ा है।
- रिपोर्ट के अनुसार 72 प्रतिशत महिलाओं और नौ प्रतिशत लड़कियों पर जल की व्यवस्था करने का बोझ है, कुछ मामलों में इन्हें अपने कैलोरी का 40 प्रतिशत तक इस काम में खर्च करना पड़ता है।
- पिछले 40 वर्षों में सूखे से प्रभावित पौधों का प्रतिशत दोगुना से अधिक हो गया है – लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर भूमि हर साल सूखे और मरुस्थलीकरण के कारण खो जाती है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका में, सूखे से प्रेरित फसल की विफलता और अन्य आर्थिक नुकसान अकेले 1980 के बाद से कुल 249 अरब डॉलर हो गए हैं। पिछली शताब्दी में, सूखे से प्रभावित मनुष्यों की कुल संख्या सबसे अधिक एशिया महाद्वीप में थी।
- 134 सूखे के साथ अफ्रीका को किसी भी अन्य महाद्वीप की तुलना में अधिक बार सूखे का सामना करना पड़ा, जिनमें से 70 पूर्वी अफ्रीका में घटित हुई।
- वर्ष 1998 से 2017 तक के गंभीर सूखे के प्रभाव से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2-5% की कमी होने का अनुमान लगाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय ( UNCCD)
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय ( UNCCD) 17 जून, 1994 को अंगीकार किया गया था तथा 26 दिसंबर, 1996 को प्रभावी हुआ।
- यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) और जैव विविधता कन्वेंशन (CBD) के साथ तीन रियो सम्मेलनों में से एक है।
- भारत ने UNCCD पर 14 अक्टूबर, 1994 को हस्ताक्षर किए थे और 17 दिसंबर, 1996 को इसकी पुष्टि की थी।
- केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय UNCCD का नोडल मंत्रालय है।
- मई 2021 तक विश्व के 197 देश इस कन्वेंशन के पक्षकार हैं।
- संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय ( UN Convention to Combat Desertification: UNCCD) पर्यावरण और विकास को सतत भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला कानूनी रूप से बाध्यकारी एकमात्र अंतरराष्ट्रीय समझौता (sole legally binding international agreement) है।
- यह कन्वेंशन विशेष रूप से शुष्क, अर्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों को संबोधित करता है, जिन्हें शुष्क भूमि ( drylands,) के रूप में जाना जाता है, जहां कुछ सबसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्र और वल्नरेबल लोग पाए जाते हैं।
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