ए.जी. पेरारिवलन रिहाई: सुप्रीम कोर्ट ने कहा की राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को राजीव गांधी हत्याकांड (Rajiv Gandhi assassination case) के सात दोषियों में से एक ए जी पेरारिवलन (A G Perarivalan) को रिहा करने का आदेश दिया। जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पेरारिवलन की रिहाई का आदेश देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, यह देखते हुए कि तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 161 के तहत रिहाई के लिए दोषी की याचिका पर फैसला करने में काफी देरी हुई थी।
राजीव गांधी हत्याकांड मामले पर एक नजर
- एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु केवल 19 वर्ष के थे, जब उन्हें 11 जून, 1991 को गिरफ्तार किया गया था। उन पर लिट्टे के शिवरासन के लिए दो 9-वोल्ट ‘गोल्डन पावर’ बैटरी सेल खरीदने का आरोप लगाया गया था। शिवरासन राजीव गांधी की हत्या साजिश का मास्टरमाइंड था। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या करने वाले बम में उन्हीं बैटरियों का इस्तेमाल किया गया था।
- राजीव गांधी की 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक रैली में एक आत्मघाती बम विस्फोट में हत्या कर दी गई थी। उस वक्त सिर्फ 19 साल की उम्र में पेरारीवलन को 11 जून 1991 को गिरफ्तार किया गया था।
- 28 जनवरी 1998 को पेरारीवलन और साथी आरोपी नलिनी समेत 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई, 1999 को चार लोगों – मुरुगन, संथान, पेरारिवलन और नलिनी – की मौत की सजा को बरकरार रखा।
- पेरारिवलन को इस अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन फरवरी 2014 में शीर्ष अदालत ने इसे उम्रकैद में बदल दिया।
- पेरारिवलन ने दिसंबर 2015 में अपनी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए राज्यपाल के समक्ष अपनी क्षमादान याचिका दायर की। हालांकि उसकी सजा को माफ करने की याचिका वर्षों तक लंबित रही, यहां तक कि तमिलनाडु राज्य सरकार ने वर्ष 2018 में इसकी सिफारिश की थी।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने ?
- सुप्रीम कोर्ट ने 18 मई को अपने निर्णय में माना कि 9 सितंबर, 2018 को पेरारिवलन को क्षमा करने के लिए तमिलनाडु मंत्रिपरिषद की सलाह संविधान के अनुच्छेद 161 (राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति) के तहत राज्यपाल पर बाध्यकारी थी।
- अदालत ने केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत हत्या के मामले में राष्ट्रपति को विशेष रूप से, न कि राज्यपाल के पास क्षमादान देने की शक्ति थी।
- न्यायालय ने एपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश सरकार मामले का हवाला देते कहा कि भले ही संविधान राज्यपाल को कुछ छूट प्रदान करता है, लेकिन अनुच्छेद 161 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग न करना न्यायिक समीक्षा से मुक्त नहीं है।
मारू राम बनाम भारत संघ
- उल्लेखनीय है कि मारू राम बनाम भारत संघ मामले (Maru Ram v Union of India) में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि अनुच्छेद 72 और 161 के तहत शक्तियों के प्रयोग के मामले में, राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्रमशः अपने निर्णय पर नहीं बल्कि क्रमशः केंद्रीय एवं राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना चाहिए।
- उक्त निर्णय में कहा गया था की राज्य मंत्रिमंडल की सलाह राज्यपाल पर बाध्यकारी है, जब तक कि राज्यपाल को संवैधानिक प्रावधान द्वारा या उसके तहत, अपने विवेक से संबंधित कार्य का निर्वहन करने के लिए स्पष्ट रूप से अधिकृत नहीं किया गया है।
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