सुप्रीम कोर्ट ने CAT के सदस्यों को कार्यकाल की समाप्ति की बाद भी काम करने को कहा है
सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (Central Administrative Tribunal: CAT) में बड़े पैमाने पर रिक्तियों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि ‘पूरा ट्रिब्यूनल ढह गया है’। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि जिन पीठों में रिक्तियां हैं, वे अन्य पीठों के सदस्यों को शामिल करके फिजिकल/हाइब्रिड रूप से और डिजिटल तरीकों के माध्यम से काम कर रही हैं। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के कुल स्वीकृत 69 सदस्यों में से 43 रिक्तियां हैं जबकि शेष 27 सदस्य कार्य कर रहे हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस मामले में चूंकि कैट में रिक्तियां नागरिकों के न्याय तक पहुंच के अधिकार को प्रभावित करती हैं, इसलिए अनुच्छेद 142 के विशेष अधिकार क्षेत्र के प्रयोग अनिवार्य हो गया है। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत शक्ति का प्रयोग करते हुए कैट के मौजूदा सदस्यों को उनका कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पद पर बने रहने का आदेश दिया।
- पीठ ने अपने आदेश में कहा कि कैट में 69 न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या में से केवल 27 न्यायाधीश ही उपलब्ध हैं जबकि अध्यक्ष सहित 43 रिक्तियां हैं।
क्या है अनुच्छेद 142 ?
- अनुच्छेद 142 कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय ऐसा कोई भी आदेश पारित कर सकता है या निर्णय दे सकता है यदि लंबित मामले में पूर्ण न्याय देने के लिए जरूरी हो। यह आदेश या निर्णय संपूर्ण भारत में लागू होगा।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के बारे में
- केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की स्थापना संविधान के अनुच्छेद 323-A के तहत सरकार का नियंत्रण वाले संघ या अन्य प्राधिकरणों के मामलों के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों के न्यायनिर्णयन के लिए की गई थी।
- पूरे भारत में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में 17 बेंच और 21 सर्किट बेंच हैं।
- प्रारंभ में ट्रिब्यूनल के निर्णय को विशेष अनुमति याचिका दायर करके सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती थी। हालांकि, एल चंद्र कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेशों को अब संबंधित उच्च न्यायालय के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा रही है, जिसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में न्यायाधिकरण की पीठ स्थित हैं।
- ट्रिब्यूनल निर्णय देने में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है और सिविल प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code) द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बाध्य नहीं होता है।
- प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत, ट्रिब्यूनल को खुद की अवमानना के संबंध में उच्च न्यायालय के समान अधिकार क्षेत्र और अधिकार का प्रयोग करने की शक्ति प्रदान की गई है।
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