केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD)

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में वेल्लोर के चर्मशोधन कारखानों से अनुपचारित अपशिष्टों को तमिलनाडु की पलार नदी में छोड़े जाने से होने वाली अपूरणीय क्षति पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन द्वारा सुनाए गए फैसले में कहा गया कि वेल्लोर में चर्मशोधन  कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति मैनुअल स्कैवेंजरों से बेहतर नहीं है।

भारत में कुल चर्मशोधन कारखानों का लगभग 45% तमिलनाडु में स्थित है और चर्मशोधन कारखानों में चमड़े के प्रसंस्करण में प्रयुक्त 50% रसायन अपशिष्ट जल या कीचड़ बन जाते हैं।

चर्मशोधन कारखानों के अपशिष्ट जल में निलंबित ठोस पदार्थ, नाइट्रोजन, सल्फेट, सल्फाइड, क्लोराइड, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Chemical oxygen demand: COD) और क्रोमियम जैसे प्रदूषक होते हैं।

चर्मशोधन उद्योग एक सदी से भी अधिक समय से बहुत कम या बिना किसी प्रदूषण नियंत्रण के चल रहे हैं। केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो पेट्रोलियम जैसे रासायनिक कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण के लिए जल में मौजूद होनी चाहिए।

केमिकल ऑक्सीजन डिमांड का उपयोग साफ जल में अपशिष्ट जल के प्रवाह के बाद ऑक्सीजन स्तर पर पड़ने वाले अल्पकालिक प्रभाव को मापने के लिए किया जाता है।

error: Content is protected !!