लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मौलिक अधिकार नहीं है- इलाहाबाद हाईकोर्ट

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6 मई 2022 को मस्जिदों व अन्य धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी। कोर्ट ने मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति मांगने की याचिका को खारिज करने के साथ ही कहा कि मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाना किसी का भी मौलिक अधिकार नहीं है। यह कहते हुए हाईकोर्ट ने बदायूं की नूरी मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।

‘ध्वनि प्रदूषण से स्वतंत्रता’ संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा

  • उच्चतम न्यायालय के निर्णय जो लाउडस्पीकरों के उपयोग को नियंत्रित करते हैं, का उद्देश्य नागरिकों को “मजबूरन श्रोता” (forced audience) बनने से बचाना था। हाल के दिनों में मंदिरों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल को लेकर तनाव बढ़ गया है।
  • हालांकि, अदालत ने 2005 में लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल पर कानून की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया था कि इसका “किसी भी धर्म या धार्मिक प्रथाओं” से कोई लेना-देना नहीं है।
  • अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि लाउडस्पीकर के उपयोग और समय को नियंत्रित करने वाले उसके निर्णय इस कानूनी सिद्धांत पर आधारित थे कि “ध्वनि प्रदूषण से स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है” (freedom from noise pollution is a part of the right to life under Article 21 of the Constitution)।
  • शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि कोई भी, भले ही धार्मिक उद्देश्य से हो या किसी अन्य उद्देश्य से हो, “अपने स्वयं के परिसर में भी शोर पैदा करने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है यदि यह शोर उसके परिसर से बाहर पड़ोसियों या अन्य लोगों को परेशान करता है”।
  • धार्मिक प्रथाओं में लाउडस्पीकरों के उपयोग पर, शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में कहा था कि किसी भी धर्म का उद्देश्य किसी को भी अपनी आस्था की अभिव्यक्तियों को सुनने के लिए मजबूर करना नहीं है।
  • अदालत ने कहा था कि धार्मिक भक्ति संचार के लिए लाउडस्पीकर जरूरी नहीं है।
  • उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2005 में सार्वजनिक स्थानों के आस-पास क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर ध्वनि प्रदूषण के गंभीर प्रभावों का हवाला देते हुए सार्वजनिक स्थानों पर रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच (सार्वजनिक आपात स्थिति के मामलों को छोड़कर) लाउडस्पीकरों और संगीत प्रणालियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।
  • 28 अक्टूबर, 2005 को, सुप्रीम कोर्ट ने इसमें संशोधन करते हुए फैसला सुनाया कि साल में 15 दिनों के लिए उत्सव के अवसरों पर मध्यरात्रि तक लाउडस्पीकर का उपयोग करने की अनुमति दी जा सकती है।

बॉम्बे हाईकोर्ट

  • अगस्त 2016 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल मौलिक अधिकार नहीं है।
  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी धर्म या संप्रदाय यह दावा नहीं कर सकता है कि लाउडस्पीकर या सार्वजनिक संबोधन प्रणाली का उपयोग करने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है। दूसरी ओर

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