प्राइवेट मेंबर्स बिल
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक विश्लेषण के अनुसार, 2024 में समाप्त होने वाले 17वीं लोकसभा के पाँच साल के कार्यकाल के दौरान, निजी सदस्यों के विधेयकों (Private Members’ Bills) पर केवल 9.08 घंटे दिए गए, जबकि राज्यसभा ने इस अवधि के दौरान उन पर 27.01 घंटे दिए।
प्रस्ताव घोषणाएँ हैं जिन पर सदन मतदान करता है, जबकि विधेयक प्रस्तावित कानून को संदर्भित करते हैं। ये सांसदों की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए उनके दल के हुक्म से बंधे बिना उपलब्ध एकमात्र साधन हैं।
वे राजनीतिक संदेश देने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में काम करते हैं। उदाहरण के लिए 1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद कांग्रेस ने उनकी जगह इंदिरा गांधी को चुना। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के तत्कालीन सांसद एच.वी. कामथ ने संविधान में संशोधन के लिए एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया ताकि केवल लोकसभा सदस्य ही प्रधानमंत्री पद के लिए पात्र हों। इंदिरा गांधी उस समय राज्यसभा की सदस्य थीं।
बता दें कि आज तक केवल 14 निजी सदस्यों के विधेयक पारित हुए हैं और उन्हें स्वीकृति मिली है। 14 विधेयकों में से छह 1956 में कानून बन गए और संसदीय अनुमोदन प्राप्त करने वाला अंतिम निजी विधेयक सर्वोच्च न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1968 था, 9 अगस्त 1970 को पारित हुआ।
1970 के बाद से दोनों सदनों में कोई भी निजी विधेयक पारित नहीं हुआ है।
सदन का एक सदस्य, जो मंत्री नहीं है, उसे निजी सदस्य कहा जाता है।
किसी मंत्री द्वारा पेश किए गए विधेयक को सरकारी विधेयक कहा जाता है और किसी निजी सदस्य द्वारा पेश किए गए विधेयक को निजी सदस्य के विधेयक के रूप में जाना जाता है।
लोकसभा में, सत्र के दौरान सदन हर शुक्रवार को निजी सदस्यों के विधेयक के लिएआखिरी ढाई घंटे आवंटित करता है, जिसमें निजी सदस्यों के विधेयक और निजी सदस्यों के संकल्प पेश किये जा सकते हैं या चर्चा की जा सकती है।