नेक्स्ट-जनरेशन डीएनए सीक्वेंसिंग (NGS) सुविधा

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) में दो अत्याधुनिक सुविधाओं का उद्घाटन किया:

  1. नेक्स्ट-जनरेशन डीएनए सीक्वेंसिंग (NGS) सुविधा।
  2. उन्नत पश्मीना प्रमाणीकरण केंद्र।

नेक्स्ट-जनरेशन डीएनए सीक्वेंसिंग (NGS) सुविधा : यह सुविधा अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके पूरे जीनोम को तेजी और कुशलता से डीकोड करती है, जिससे लाखों डीएनए अनुक्रमों का एक साथ विश्लेषण किया जा सकता है। यह तकनीक निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण है:

  • आनुवंशिक विविधता और जनसंख्या स्वास्थ्य का मूल्यांकन।
  • विकासवादी संबंधों और अनुकूलन को समझना।
  • रोग प्रकोपों की निगरानी।
  • अवैध वन्यजीव व्यापार का पता लगाना।
  • जैव विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन।

महत्व:

  • WII को आणविक और आनुवंशिक वन्यजीव अनुसंधान में अग्रणी बनाता है।
  • जैव विविधता जीनोमिक्स, जनसंख्या आनुवंशिकी, और रोग निगरानी में अनुसंधानों को बढ़ावा देता है।
  • बाघ, हाथी और गंगा डॉल्फिन जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण प्रयासों को सशक्त करता है। 

उन्नत पश्मीना प्रमाणीकरण केंद्र (Advanced Facility for Pashmina Certification)

पश्मीना प्रमाणीकरण केंद्र (PCC):

  • पिछले वर्ष स्थापित इस केंद्र ने अब तक 15,000 से अधिक शॉल प्रमाणित किए हैं।
  • यह केंद्र पश्मीना उत्पादों की प्रामाणिकता और फाइबर की शुद्धता सुनिश्चित करता है, जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इनके व्यापार को बढ़ावा मिलता है। 
  • स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (SEM) और एनर्जी डिस्पर्सिव स्पेक्ट्रोस्कोपी (EDS) शामिल की गई हैं, जो ऊन परीक्षण और प्रमाणन की सटीकता और विश्वसनीयता को बढ़ाती हैं। 

पश्मीना और उसकी महत्ता

  • चांगथांगी बकरी:
    • पश्मीना ऊन चांगथांगी बकरी से प्राप्त की जाती है। यह बकरी लद्दाख के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की स्वदेशी प्रजाति है।
    • इनसे विश्व की सबसे उत्कृष्ट ऊन प्राप्त होती है, जिसकी मोटाई 12-15 माइक्रोन होती है।
    • इस ऊन को कश्मीर में पारंपरिक तरीके से हाथ से काता और बुना जाता है।
  • सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व:
    • इस बकरी को लद्दाख के चांगथांग क्षेत्र के घुमंतू चांगपा समुदाय द्वारा पाला जाता है।
    • पश्मीना ऊन इन समुदायों की आजीविका का प्रमुख स्रोत है।
  • भौगोलिक संकेतक (GI) प्रमाणन:
    • लद्दाख की पश्मीना ऊन को GI पंजीकरण प्राप्त है, जो इसकी विरासत और प्रामाणिकता को संरक्षित करता है।
error: Content is protected !!