हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (Helicobacter pylori)

हैदराबाद स्थित एशियाई गैस्ट्रोएंटरोलॉजी संस्थान (AIG) अस्पताल ने 8 नवंबर को एच पाइलोरी अनुसंधान के लिए बैरी मार्शल केंद्र (Barry Marshall Centre for H Pylori Research) का शुभारंभ किया। इसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी संक्रमण के अध्ययन और उपचार पर केंद्रित पहला केंद्र बताया गया है।

हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (Helicobacter pylori) एक प्रकार का बैक्टीरिया है जो पेट में रह सकता है। लोगों को  आमतौर पर बचपन में इसका संक्रमण होता है, और यह बिना किसी समस्या के शरीर में सालों तक रह सकता है।

भले ही पेट में तेज़ अम्ल होता है, लेकिन एच. पाइलोरी एक ऐसा पदार्थ बनाकर जीवित रहता है जो अम्ल को कमज़ोर कर देता है। समय के साथ, यह बैक्टीरिया पेट की सुरक्षात्मक परत को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे जलन होती है और कभी-कभी दर्दनाक घाव हो जाते हैं जिन्हें अल्सर कहा जाता है।

एच. पाइलोरी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में, मुख्य रूप से लार के माध्यम से फैल सकता है।

ऑस्ट्रेलियाई चिकित्सक बैरी मार्शल ने इस जीवाणु की खोज और अल्सर तथा गैस्ट्राइटिस से इसके संबंध के लिए 2005 में फिजियोलॉजी (मेडिसिन) में नोबेल पुरस्कार जीता था।

दूषित भोजन या पानी या स्वच्छता की कमी, खासकर भीड़-भाड़ वाले इलाकों में या साफ पानी और स्वच्छता तक सीमित पहुंच के कारण भी इसके प्रसार में योगदान होता है।

हेलिकोबैक्टर पाइलोरी (एच. पाइलोरी) संक्रमण भारत में अनुमानित 50% से 60% आबादी को प्रभावित करता है और एक बड़ी पब्लिक हेल्थ चुनौती है।

यह जीवाणु संक्रमण, जो अक्सर बचपन में शुरू होता है, देश में मधुमेह से लगभग 10 गुना अधिक प्रचलित है और क्रोनिक गैस्ट्राइटिस, पेप्टिक अल्सर और यहां तक कि पेट के कैंसर का एक प्रमुख कारण है।

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