चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट देखना और अपने पास रखना भी अपराध है-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर को कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट को देखना, अपने पास रखना और उसकी रिपोर्ट न करना भी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत दंडनीय है, भले ही इसे साझा किया जाए या आगे प्रसारित किया जाए या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के सिंगल जज बेंच के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 28 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जिसने अपने फोन पर बच्चों से जुड़े दो अश्लील वीडियो डाउनलोड किए थे।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने POCSO अधिनियम की धारा 15 की व्याख्या का विस्तार किया, जो “बच्चों से जुड़े अश्लील कंटेंट के स्टोर के लिए दंड” से संबंधित है।
मूल रूप से, यह प्रावधान उन मामलों तक सीमित था जहाँ कोई व्यक्ति “व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए” बच्चों का अश्लील कंटेंट संग्रहीत करता है।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि धारा 15 केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफ़िक कंटेंट को साझा करने या प्रसारित करने को दंडित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उपयोग ऐसे कृत्य को करने के “इरादे” को दंडित करने के लिए भी किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी मामलों में “कब्ज़े” यानी कंटेंट अपने पास रखने की परिभाषा का विस्तार किया, जिसमें ऐसे मामले शामिल हैं जहाँ व्यक्ति के खुद के पास चाइल्ड पोर्नोग्राफ़िक कंटेंट का भौतिक रूप उपलब्ध नहीं होह, लेकिन उनके पास “विचाराधीन कंटेंट को नियंत्रित करने की शक्ति और ऐसे नियंत्रण के प्रयोग का ज्ञान” है।
न्यायालय ने इसे “कंस्ट्रक्टिव पोजेशन” (constructive possession) कहा और कहा कि ऐसे कंटेंट को “देखना, वितरित करना या प्रदर्शित करना” अभी भी धारा 15 के तहत अभियुक्त के “कब्ज़े” में माना जाएगा।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 में बनाया गया था। यह कानून भारत में बच्चों को यौन शोषण और उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया एक व्यापक कानूनी ढांचा है।
यह विशेष रूप से 18 वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों को यौन शोषण, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफ़ी सहित विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों से बचाता है। POCSO अधिनियम, 2012 को 19 जून, 2012 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और अगले दिन इसे आधिकारिक तौर पर भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया गया।
अधिनियम में “चाइल्ड” की परिभाषा 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के रूप में की गई है।
2019 में, POCSO अधिनियम में धारा 15(1), (2) और (3) के तहत तीन जुड़े अपराधों को शामिल करने के लिए संशोधन किया गया था, जिसमें सजा की श्रेणियां हैं – जुर्माना से लेकर तीन से पांच साल की जेल की सजा।
ये प्रावधान चाइल्ड पोर्नोग्राफ़िक के मामले में अग्रलिखित व्यक्तियों को दंडित करते हैं:
- कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी रूप में किसी बच्चे से संबंधित अश्लील कंटेंट संग्रहीत करता है या रखता है, परन्तु चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी कंटेंट को शेयर करने या प्रसारित करने के इरादे से, उसे डिलीट या नष्ट करने या नामित प्राधिकारी को रिपोर्ट करने में विफल रहता है;
- कोई भी व्यक्ति, जो किसी भी समय किसी भी तरीके से चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी कंटेंट संचारित करने, प्रसार करने या प्रदर्शित करने या वितरित करने के उद्देश्य से संग्रहीत करता है या अपने पास रखता है, हालाँकि इसे अदालत में सबूत के रूप में उपयोग करने या साक्ष्य के रूप में अपने पास रखना दण्डित नहीं है; और
- कोई भी व्यक्ति, जो व्यावसायिक उद्देश्य के लिए किसी भी रूप में बच्चे से संबंधित अश्लील कंटेंट करता है या रखता है।