भारत में ‘टील कार्बन’ (Teal Carbon) पर पहली रिसर्च स्टडी

भारत में ‘टील कार्बन’ (teal carbon) पर पहली रिसर्च स्टडी राजस्थान के भरतपुर जिले में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में की गई।

टील कार्बन (teal carbon) गैर-ज्वारीय ताजे जल की आर्द्रभूमि (वेटलैंड्स) में संग्रहीत कार्बन है, जिसमें वनस्पति, माइक्रोबियल बायोमास और घुले हुए और पार्टिकुलेट आर्गेनिक पदार्थ में संग्रहित कार्बन शामिल है।

हालांकि ये वेटलैंड्स ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन वे प्रदूषण, भूमि उपयोग में बदलाव, जल निकासी और भूक्षेत्र के क्षरण के कारण खतरे में पड़ सकते हैं।

वैश्विक स्तर पर, पारिस्थितिकी तंत्र में टील कार्बन का भंडारण 500.21 पेटाग्राम कार्बन (पीजीसी) होने का अनुमान है। पीटलैंड, फ्रेशवाटर स्वैंप और नेचुरल फ्रेशवाटर मार्शेज इस टील कार्बन भंडारण का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

‘टील कार्बन’ कलरआधारित टर्म है जो आर्गेनिक कार्बन के वर्गीकरण को उसके भौतिक गुणों की बजाय उसके कार्यों और स्थान के आधार पर दर्शाती है।

टील कार्बन के विपरीत, ब्लैक और ब्राउन कार्बन मुख्य रूप से जंगली आग, जीवाश्म ईंधन दहन और औद्योगिक गतिविधियों जैसे स्रोतों से कार्बनिक पदार्थों के अधूरे दहन से उत्पन्न होता है। वे ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं।

इस स्टडी ने जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन की चुनौतियों का समाधान करने के लिए आर्द्रभूमि संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला है।

पायलट परियोजना ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए समग्र प्रकृति-आधारित समाधान विकसित करने की मांग की।

टील कार्बन की अवधारणा इनलैंड फ्रेश वेटलैंड में आर्गेनिक कार्बन से संबंधित पर्यावरण विज्ञान में हाल ही में जोड़ी गई है।

इस स्टडी ने जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए एक टूल के रूप में टील कार्बन की क्षमता को दर्शाया है।

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