चंद्रयान के प्रज्ञान रोवर ने चंद्रमा पर मैग्मा के प्राचीन महासागर के साक्ष्य की खोज की है

एक शोध टीम ने चंद्रयान-3 के अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) उपकरण के जरिये चन्द्रमा की मिट्टी में फेरोअन एनोर्थोसाइट नामक चट्टान के प्रकार की उपस्थिति का पता लगाने की सूचना दी है। य

ह रिपोर्ट महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रिपोर्ट अमेरिकी अपोलो मिशन और तत्कालीन सोवियत संघ के लूना मिशन ने 1960 के दशक में चंद्रमा के भूमध्य रेखा से जो देखा था, उसकी पुष्टि करता है। 1971 में, अंतरिक्ष यात्री जेम्स इरविन और डेविड स्कॉट ने स्पर क्रेटर के किनारे से जेनेसिस रॉक नामक फेरोन एनोर्थोसाइट का एक नमूना एकत्र किया था।

बता दें कि वैज्ञानिकों के बीच आम सहमति है कि ये एनोर्थोसाइट चट्टानें मैग्मा के एक प्राचीन महासागर के अवशेष (ancient ocean of magma) हो सकते हैं, जो लगभग चार अरब साल पहले चंद्रमा की सतह को ढके हुए था।

महासागर के अवशेष भारत के ऐतिहासिक चंद्रयान-3 मिशन द्वारा पाए गए हैं, जो 23 अगस्त 2023 को दक्षिणी ध्रुव पर उतरा था।

फेरोअन एनोर्थोसाइट चट्टानें पृथ्वी पर बहुत आम हैं। यह खोज, जो जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है, चंद्रमा के निर्माण के बारे में “चंद्र मैग्मा महासागर सिद्धांत” (Lunar Magma Ocean theory) नामक एक विचार का समर्थन करने में मदद करते हैं।

आम सहमति के अनुसार, चंद्रमा का जन्म प्रारंभिक पृथ्वी और कुछ दुष्ट ग्रहीय पिंडों के बीच टकराव के अवशेषों से हुआ था।

चंद्रमा की चट्टानी सतह शुरू में पिघली हुई थी। जैसे ही लावा ठंडा हुआ, वहां मौजूद खनिज धीरे-धीरे क्रिस्टलीकृत हो गए और विभिन्न प्रकार की चट्टानों का निर्माण किया, जिसमें फेरोएन एनोर्थोसाइट भी शामिल है।

चंद्रयान-3 मिशन पर सवार विक्रम लैंडर 23 अगस्त, 2023 को भारतीय समयानुसार शाम 6 बजे के बाद चंद्रमा पर उतरा। प्रज्ञान रोवर कुछ घंटों बाद निकला और अगले दो हफ्तों में विक्रम से लगभग 100 मीटर की दूरी पर चला गया।

विक्रम का लैंडिंग स्पॉट, स्टेशन शिव शक्ति, सौर मंडल के सबसे बड़े इम्पैक्ट क्रेटर दक्षिणी ध्रुव-ऐटकेन बेसिन से लगभग 300 किमी दूर है।

अपनी यात्रा के दौरान, रोवर कभी-कभी स्टेशन शिव शक्ति के आसपास लगभग 23 स्थानों से अपने उपकरणों के साथ चंद्रमा की धूल का निरीक्षण करने के लिए रुका।

रोवर के नेविगेशन कैमरों के करीब लगे इसके अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) उपकरण ने क्यूरियम के रेडियोधर्मी द्रव्यमान से उत्पन्न एक्स-रे और अल्फा कणों को फायर करके धूल की रासायनिक और खनिज संरचना की पुष्टि की।

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