नीलकुरिन्जी (स्ट्रोबिलैन्थेस कुंथियाना) को IUCN रेड लिस्ट में में शामिल किया गया
नीलकुरिन्जी (स्ट्रोबिलैन्थेस कुंथियाना) को IUCN (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) की खतरे वाली प्रजातियों की आधिकारिक लाल सूची (रेड लिस्ट) में वल्नरेबल श्रेणी में शामिल किया गया है।
दक्षिण पश्चिम भारत के पर्वतीय घास के मैदानों की इस प्रमुख प्रजाति के लिए यह अब तक का पहला वैश्विक रेड लिस्ट असेसमेंट है।
नवीनतम वैश्विक मूल्यांकन IUCN की वल्नरेबल (मानदंड A2c) श्रेणी में इसकी खतरे की स्थिति की पुष्टि करता है।
नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलैंथेस कुंथियाना) के बारे में
नीलकुरिंजी (Neelakurinji) बैंगनी रंग के फूलों वाली झाड़ी है, जो 12 साल में एक बार खिलती है। फूलों का सामूहिक रूप से खिलना एक बड़ा पर्यटक आकर्षण है।
स्ट्रोबिलैन्थेस कुंथियाना (Strobilanthes kunthiana) तीन मीटर ऊंचाई का एक एंडेमिक यानी स्थानिक झाड़ी है, जो केवल 1,340-2,600 मीटर की ऊंचाई पर दक्षिण-पश्चिम भारत के पांच पहाड़ी भूक्षेत्रों के उच्च ऊंचाई वाले शोला घास के मैदान इकोसिस्टम में देखा जाता है।
वे जीवन चक्र के अंत में हर 12 साल में दिखावटी समकालिक रूप से खिलते और फलते हैं, जिसके बारे में 1832 से रिपोर्ट किया गया है।
इस प्रजाति की दक्षिण-पश्चिम भारत की उच्च ऊंचाई वाली पर्वत श्रृंखलाओं के 14 पारिस्थितिक क्षेत्रों में 34 सब-पॉपुलेशन है।
पश्चिमी घाट में 33 और पूर्वी घाट (यरकौड, शेवरॉय हिल्स) में एक सब-पॉपुलेशन है।
अधिकांश सब-पॉपुलेशन तमिलनाडु के नीलगिरि में हैं, इसके बाद मुन्नार, पलानी-कोडाईकनाल और अनामलाई पर्वत में हैं।
नीलकुरिंजी को मुख्य रूप से पर्वतीय उच्च ऊंचाई वाले घास के मैदानों में इसके नाजुक प्राप्ति स्थल के कारण खतरा है। इन मैदानों को चाय और नरम लकड़ी के बागानों के लिए बदला जा रहा है और शहरीकरण का दबाव भी यह झेल रहा है।