संवैधानिक न्यायालयों को परिसीमन आयोग के आदेशों की वैधता की जाँच करने की शक्ति है-सुप्रीम कोर्ट

हाल ही में, किशोरचंद्र छगनलाल राठौड़ बनाम भारत संघ और अन्य मामले में, सुप्रीम कोर्ट  ने माना कि संवैधानिक न्यायालयों को परिसीमन आयोग (delimitation commission) द्वारा पारित आदेशों की वैधता की जाँच करने से कोई नहीं रोकता है यदि कोई आदेश स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं पाया जाता है।

यह आदेश गुजरात उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर आया है। उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 329(a) का हवाला देते हुए कहा था कि चुनाव संबंधी मामलों में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुच्छेद 329(a) निस्संदेह चुनाव मामले में न्यायिक जांच के दायरे को सीमित करता है, लेकिन इसे परिसीमन अभ्यास की हर कार्रवाई के लिए लागू नहीं माना जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने अपने पिछले आदेशों का संदर्भ दिया। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) बनाम तमिलनाडु राज्य (2020) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि एक संवैधानिक न्यायालय चुनावों को सुविधाजनक बनाने के लिए या जब दुर्भावनापूर्ण या मनमाने ढंग से सत्ता के प्रयोग का मामला बनता है, तो हस्तक्षेप कर सकता है।

इसी तरह मेघराज कोठारी के मामले में, न्यायालय ने माना था कि चुनाव प्रक्रिया में अनावश्यक देरी से बचने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप को सीमित किया गया है, लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि परिसीमन आयोग के आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए संवैधानिक न्यायालयों की शक्तियों पर पूर्ण प्रतिबंध है।

क्या होता है परिसीमन ?

  • परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधानमंडल वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा या सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया।
  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार, प्रत्येक जनगणना के पश्चात संसद विधि द्वारा परिसीमन कानून बनाती है। कानून के लागू होने के पश्चात केन्द्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है। यह परिसीमन आयोग परिसीमन अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का सीमांकन करता है।
  • निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन, परिसीमन अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के अंतर्गत वर्ष 2001 के जनगणना आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
  • उपर्युक्त के होते हुए भी, वर्ष 2002 में, 84वें संविधान संशोधन के द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के परिसीमन की प्रक्रिया को कम से कम वर्ष 2026 तक रोक दिया गया।
  • परिसीमन का कार्य एक उच्च शक्ति निकाय को सौंपा गया है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है।
  • भारत में, इस तरह के परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है – 1952 में, 1963 में, 1973 में और 2002 में। परिसीमन आयोग भारत में एक उच्च शक्ति निकाय है जिसके आदेशों में कानून का बल है और इसे किसी भी अदालत के समक्ष प्रश्नगत नहीं किया जा सकता है।
  • ये आदेश इस संबंध में भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट की जाने वाली तारीख पर लागू होते हैं।
  • इसके आदेशों की प्रतियां लोक सभा और संबंधित राज्य विधान सभा के समक्ष रखी जाती हैं, लेकिन उनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं है।
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