RBI ने जारी किए विलफुल और लार्ज डिफाल्टर पर मास्टर निर्देश

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 30 जुलाई 2024 को विलफुल और लार्ज डिफॉल्टरों (wilful and large defaulters) की पहचान और समाधान के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक मास्टर निर्देश जारी किया।

ये दिशा-निर्देश बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्ज़िम बैंक) तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) जैसे वित्तीय संस्थानों पर लागू होंगे।

विलफुल डिफॉल्टर वह कर्जदार या गारंटर होता है जिसने जानबूझकर ऋण नहीं चुकाया है और बकाया राशि 25 लाख रुपये या उससे अधिक है।

लार्ज डिफॉल्टर का मतलब है 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक की बकाया राशि वाले डिफॉल्टर, और जिनके खिलाफ मुकदमा दायर किया गया है; या जिनके खाते को संदिग्ध या घाटे के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

इसके लिए बैंकों को खाते को नॉन-परफार्मिंग असेट्स (NPA) के रूप में वर्गीकृत किए जाने के छह महीने के भीतर कर्जदार को जानबूझकर डिफॉल्टर घोषित करना होता है।

इस प्रक्रिया में जानबूझकर डिफॉल्ट करने के सबूतों की एक “पहचान समिति” द्वारा जांच की जाती है और उधारकर्ता से प्राप्त लिखित प्रतिनिधित्व के साथ-साथ पूर्व के प्रस्ताव को “समीक्षा समिति” द्वारा विचार किया जाता है।

नए दिशा-निर्देशों ने कर्जदारों को समीक्षा पैनल के समक्ष व्यक्तिगत सुनवाई का अधिकार भी दिया है। पहले, सुनवाई आयोजित करने का निर्णय समिति के विवेक पर था, लेकिन अब कर्जदाता की बात सुनना अनिवार्य है।

जानबूझकर डिफॉल्ट करने वालों के खिलाफ लागू किए जाने वाले दंडात्मक उपायों में शामिल हैं: किसी भी ऋणदाता द्वारा ऐसे ऋणी या किसी ऐसी संस्था को कोई अतिरिक्त ऋण सुविधा नहीं दी जाएगी जिसके साथ ऋणी जुड़ा हुआ है; और जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाले या किसी ऐसी संस्था को अतिरिक्त ऋण सुविधा पर प्रतिबंध जिसके साथ जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाला जुड़ा हुआ है, जो कि कर्जदाता द्वारा विलफुल डिफॉल्टर का नाम विलफुल डिफॉल्टर्स (LWD) की सूची से हटाने के एक वर्ष की अवधि तक प्रभावी होगा।

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