हंसा मेहता का योगदान
कूटनीति में महिलाओं के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने भारत की एक महिला नेता, कार्यकर्ता और डिप्लोमेट हंसा मेहता (Hansa Mehta) को श्रद्धांजलि अर्पित की, और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को और अधिक समावेशी बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला।
मेहता ने 1947 से 1948 तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया।
उन्हें मानवता के पर्याय के रूप में “पुरुषों” शब्द के प्रयोग के खिलाफ सफलतापूर्वक बहस करने का श्रेय दिया जाता है, और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 1 में “सभी पुरुष (मेन) स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं” वाक्यांश की जगह “सभी मनुष्य (ह्यूमन) स्वतंत्र और समान पैदा होते हैं” लाने का श्रेय दिया जाता है।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में अधिक समावेशी भाषा की शुरूआत महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
हंसा मेहता एक प्रमुख भारतीय विद्वान, शिक्षाविद, समाज सुधारक और लेखिका थीं। 3 जुलाई, 1897 को जन्मी मेहता महिला अधिकारों की चैंपियन थीं।
1946 में अखिल भारतीय महिला सम्मेलन (AIWC) की अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने “भारतीय महिला अधिकार चार्टर” का मसौदा तैयार करने का नेतृत्व किया AIWC के चार्टर के कई प्रावधानों को भारतीय संविधान में जेंडर न्यूट्रल रखने का आधार बनाया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, मेहता ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) का प्रारूप तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाई। इसके लिए गठित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में एलेनोर रूजवेल्ट के अलावा वह एकमात्र अन्य महिला प्रतिनिधि थीं।