सिंपैट्रिक स्पीशीज़ेशन

हाल ही में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, एशियाई शेर (पैंथेरा लियो लियो) और बंगाल टाइगर (पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस) ने वास्तव में सदियों से एशिया भर में एक ही हैबिटेट स्थान साझा किया है।

हालाँकि, आज वे केवल भारत के जंगल  में एक साथ पाए जाते हैं। यहाँ भी, उनके भूगोल-विशिष्ट हैबिटेट स्थल का मतलब है कि वे अब एक ही इलाके में नहीं पाए जाते हैं।

अध्ययन के अनुसार, उनका सह-अस्तित्व प्रजातियों के बीच एक आंतरिक संघर्ष के बजाय उनके विभिन्न पारिस्थितिक और व्यावहारिक अनुकूलन का एक परस्पर क्रिया है।

जीव विज्ञान में सिंपैट्रिक प्रजातिकरण या स्पीशीजेशन आमतौर पर दो संबंधित प्रजातियों (शेर और बाघ दोनों फेलिडे परिवार से संबंधित हैं) से संबंधित है जो एक ही भौगोलिक क्षेत्र में मौजूद होते हैं और इस प्रकार अक्सर एक दूसरे से मिलते हैं।  

प्रजातिकरण या स्पीशीजेशन  (Speciation) वह तरीका है जिससे एक नए प्रकार के पौधे या पशु प्रजाति का उद्भव होता है। प्रजातिकरण तब होता है जब किसी प्रजाति के भीतर का एक समूह अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों से अलग हो जाता है और आगे चलकर एक नई प्रजाति के रूप में सामने आता है।

एलोपेट्रिक स्पीशीजेशन  (Allopatric speciation) तब होता है जब एक प्रजाति दो अलग-अलग समूहों में बंट जाती है और एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।  पर्वत श्रृंखला या जलमार्ग जैसे भौगोलिक अवरोध की वजह से वे अलग-अलग हो जाते हैं।  उनके लिए एक दूसरे के साथ प्रजनन करना असंभव बना देता है। इस तरह समय के साथ नई प्रजाति का उद्भव होता है।  

सिंपैट्रिक स्पीशीज़ेशन तब होता है जब किसी प्रजाति के किसी भी सदस्य को किसी अन्य के साथ प्रजनन करने से रोकने वाली कोई भौतिक बाधा नहीं होती है, और सभी सदस्य एक दूसरे के बहुत करीब होते हैं। एक नई प्रजाति, शायद एक अलग खाद्य स्रोत या विशेषता के आधार पर, स्वतःस्फूर्त रूप से विकसित होती है। इस तरह एक ही समूह की प्रजाति समान भौगोलिक हैबिटेट में रहते हुए भी कई वजहों से अलग-अलग प्रजाति के रूप में सामने आती हैं।

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