स्थाई कार्बनिक प्रदूषकों (POPs) में कमी दर्ज की गई

एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2004 से वैश्विक स्तर पर कड़े नियमों के कारण मनुष्यों और पर्यावरण में कीटनाशक डाइक्लोरो-डाइफेनिल-ट्राइक्लोरोइथेन (DDT) के साथ-साथ 11 अन्य स्थाई कार्बनिक प्रदूषकों (Persistent Organic Pollutants: POPs) में भी कमी आई है।

घातक POPs के विकल्प जैसे कि “पर-और पॉलीफ्लुओरोएल्काइल पदार्थ (PFAS)) भी उच्च स्तर पर पाए गए हैं। DDT सहित 12 POPs के स्तर में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है। DDT सहित 12 POPs के स्तर में वैश्विक स्तर पर गिरावट आई है। इन 12 को शुरू में 2004 के स्टॉकहोम कन्वेंशन में सूचीबद्ध किया गया था।

स्थायी कार्बनिक प्रदूषक (POP) हवा और पानी से लंबी दूरी तक ले जाये जा सकते हैं, पर्यावरण में लम्बे समय तक बने रह सकते हैं, पारिस्थितिकी तंत्र में जैव-आवर्धन और बायोएक्युमुलेशन की क्षमता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनके महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभावों के कारण वैश्विक चिंता के रसायन हैं।

मनुष्य इन रसायनों के संपर्क में कई तरह से आते हैं: मुख्य रूप से हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन के माध्यम से, हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसके माध्यम भी, आउटडोर, इनडोर और कार्यस्थल पर।

यह माना गया है कि पर्यावरण में स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों के स्तर की निगरानी के लिए ब्रेस्टमिल्क एक आदर्श मैट्रिक्स है। अर्थात यह ब्रेस्टमिल्क में भी पाया गया है।

POPs मानव शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता के कारण कैंसर, लिवर को नुकसान, प्रजनन क्षमता में कमी और अस्थमा और थायराइड रोग के बढ़ते जोखिम से जुड़े हैं।

स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन (Stockholm Convention on Persistent Organic Pollutants) कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

इसे 22 मई 2001 को स्टॉकहोम, स्वीडन में प्लेनिपोटेंटियरीज के सम्मेलन द्वारा अपनाया गया था। यह संधि 17 मई 2004 को लागू हुई।

इसका उद्देश्य 12 प्रमुख POP के उत्पादन, उपयोग और/या रिलीज को कम करना या खत्म करना है। भारत ने 13 जनवरी, 2006 को स्टॉकहोम संधि की पुष्टि की थी।

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