इंटरेस्ट एक्वालाइजेशन स्कीम (IES)

निर्यातकों ने सरकार से 30 जून को समाप्त होने वाली इंटरेस्ट एक्वालाइज़ेशन स्कीम (IES) का विस्तार करने का आग्रह किया है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के अनुसार, यह योजना भारतीय निर्यातक, विशेषकर MSMEs को प्रतिस्पर्धात्मकता प्रदान करती है, क्योंकि भारत में ब्याज दरें अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है, और योजना से इन ब्याज दरों में सब्सिडी प्राप्त हो जाती है। इससे भारतीय निर्यात को सस्ता रखने में मदद मिलती है।

भारत में बैंक दर 6.5 प्रतिशत है, जबकि कई एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में बैंक दर 3.5 प्रतिशत के आसपास है। इसे भारत में ऋण लागत (ऋण लेना) आम तौर पर ऐसे देशों की तुलना में 5 से 6 प्रतिशत से अधिक है।

निर्यातकों का कहना है कि इस योजना की अब और अधिक जरुरतहै क्योंकि समुद्री और हवाई माल ढुलाई में भारी वृद्धि के कारण निर्यातकों को अधिक ऋण की जरुरत हैं।

इंटरेस्ट एक्वालाइज़ेशन स्कीम पहली बार अप्रैल 2015 में पांच साल के लिए लागू की गई थी। यह योजना 410 पहचाने गए उत्पादों के निर्यातकों और MSME क्षेत्र के सभी निर्यातकों को सरकार द्वारा निर्धारित रियायती ब्याज दर पर बैंक ऋण प्राप्त करने की अनुमति देती है।

बाद में बैंकों को उनकी कम ब्याज आय के लिए सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति की जाती है।

तब से इस योजना को कई विस्तार मिले हैं और अंतिम विस्तार 30 जून 2024 को समाप्त होने वाला है।

अभी, 410 पहचाने गए उत्पादों के लिए कुछ निर्माताओं और व्यापारी निर्यातकों के लिए इंटरेस्ट एक्वालाइज़ेशन की दर 2 प्रतिशत और MSME निर्माताओं के लिए तीन प्रतिशत है।

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