राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू हुआ

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code: UCC) अधिनियम की मंजूरी मिलने के बाद उत्तराखंड स्वतंत्र भारत में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) अधिनियम अपनाने वाला पहला राज्य बन गया है।

वैसे गोवा में भी समान नागरिक संहिता लागू है लेकिन वहां यह 1870 के दशक से लागू है जब राज्य पुर्तगालियों के अधीन था। वहां यह तब से लागू है जब वह भारतीय संघ का हिस्सा नहीं था।

उत्तराखंड राज्य विधानसभा ने 07 फरवरी, 2024 को विधेयक पारित किया गया था। इससे पहले सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने 2 फरवरी को उत्तराखंड राज्य को इस कानून का अपना मसौदा प्रस्तुत किया था, जिसे बाद में 4 फरवरी को राज्य मंत्रिमंडल द्वारा पारित किया गया था।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के संविधान’ के अनुच्छेद 201 के तहत, 11 मार्च 2024 को उत्तराखंड विधान सभा द्वारा पारित ‘समान नागरिक संहिता उत्तराखंड 2024’ विधेयक को मंजूरी दी।

संविधान के अनुच्छेद 201 में विशेष रूप से कहा गया है कि जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के विचार के लिए राज्यपाल द्वारा आरक्षित रखा जाता है तब राष्ट्रपति या तो घोषणा करेगा कि वह विधेयक पर सहमति देता है या वह उस पर सहमति रोक देता है।

इस कानून को चार खंडों; विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है।

आदिवासियों को उत्तराखंड समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखा गया है।

इस कानून में हलाला, इद्दत और तलाक (मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह और तलाक से संबंधित रीति-रिवाज) जैसी प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। अगर कोई व्यक्ति हलाला करता पाया जाता है तो यूसीसी के तहत तीन साल की सजा या एक लाख रुपये का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

विधेयक यह भी अनुमति देता है कि विवाह केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच ही किया जा सकता है। विवाह की आयु लड़कों के लिए 21 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है।

UCC कानून में विवाह और तलाक का पंजीकरण कराना भी अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसा न करने पर संबंधित दम्पति को सभी सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा।

यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं को संपत्ति और विरासत अधिकारों से संबंधित मामलों में समान अधिकार दिए जाएं।

संहिता में जायज व नाजायज बच्चे में कोई भेद नहीं किया गया है। लिव इन रिलेशन का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।

समान नागरिक संहिता का प्रावधान संविधान के राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (भाग IV) का एक हिस्सा है जो न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है, फिर भी देश के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले जैसे कई न्यायिक उदाहरणों ने फैसला सुनाया है कि मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाना संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।

2019 में, जोस पाउलो कॉटिन्हो बनाम मारिया लुइज़ा वेलेंटीना परेरा फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गोवा को एक “बेहतरीन उदाहरण” के रूप में सराहा, जहां “समान नागरिक संहिता कुछ सीमित अधिकारों की रक्षा को छोड़कर, धर्म की परवाह किए बिना सभी पर लागू होती है” और तदनुसार आग्रह किया की इसे पूरे भारत में लागू किया जाना चाहिए।

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