फॉरेस्ट एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी, 2024 को सरकार को आदेश दिया कि वह वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2023 को चुनौती देने वाली याचिका पर अंतिम फैसला आने तक वन (फॉरेस्ट) की परिभाषा के लिए व्यापक “डिक्शनरी मीनिंग” का पालन जारी रखे, जैसा कि टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले (T.N. Godavarman Thirumulpad) में 1996 में सुप्रीम कोर्ट निर्णय दिया था।

अदालत ने सरकार से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा वन के रूप में समझी जाने वाली भूमि का एक समेकित रिकॉर्ड अप्रैल तक सार्वजनिक करने के लिए भी कहा है।

वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act) के प्रावधान, जो 1980 में लागू हुए, मुख्य रूप से भारतीय वन अधिनियम द्वारा या 1980 के बाद से राज्यों द्वारा उनके रिकॉर्ड में मान्यता प्राप्त वन भूमि के हिस्सों पर लागू होते हैं।  

टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद मामले (1996) के फैसले में आदेश दिया गया कि जंगलों को संरक्षित किया जाना चाहिए, भले ही उन्हें किसी भी श्रेणी में वर्गीकृत किया जाए और उनका स्वामित्व किसी के पास (सरकारी या प्राइवेट जमीन पर) हो

इस निर्णय से ‘डीम्ड फारेस्ट’ या वन-सदृश क्षेत्रों की कांसेप्ट सामने आई। डीम्ड फॉरेस्ट (deemed forests) में ऐसे वन हो सकते हैं जिन्हें आधिकारिक तौर पर सरकारी या रेवेन्यू  रिकॉर्ड में फारेस्ट के रूप वर्गीकृत नहीं किया गया था, लेकिन वे वन जैसे दिखते हैं।

इस निर्णय के बाद राज्यों ने ‘फॉरेस्ट’ की अलग-अलग व्याख्या की है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश  जंगल को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में परिभाषित करते हैं जो न्यूनतम 10 हेक्टेयर तक फैला हुआ है, जो प्राकृतिक रूप से उगने वाली लकड़ी, ईंधन की लकड़ी और उपज देने वाले पेड़ों से ढका हुआ है और जिसका घनत्व 200 पेड़ प्रति हेक्टेयर से अधिक है।

गोवा सरकार वन को भूमि के एक खंड  के रूप में परिभाषित करती है जिसका कम से कम 75% भाग वन प्रजातियों से ढका हुआ है

केंद्र सरकार ने इस निर्णय के बाद राज्य सरकारों द्वारा फॉरेस्ट की अलग-अलग परिभाषा को देखते हुए वन संरक्षण अधिनियम 2023 के माध्यम से “स्पष्टता” लाने की कोशिश की।

बता दें कि रिकॉर्ड की गई वन भूमि के बड़े हिस्से पहले से ही कानूनी तौर पर गैर-वानिकी उपयोग में लाए गए थे, लेकिन ये अब राज्य सरकारों के ‘डीम्ड फॉरेस्ट’ के मानदंडों में शामिल हो रहे थे।

2023 के संशोधन अधिनियम के तहत, अंतरराष्ट्रीय सीमाओं या नियंत्रण रेखा या वास्तविक नियंत्रण रेखा से 100 किलोमीटर की दूरी के भीतर स्थित वन भूमि, जिन्हें राष्ट्रीय महत्व की सामरिक परियोजनाओं के निर्माण के लिए साफ करने की आवश्यकता है, को वन अधिनियम से छूट दी गयी।

इसी तरह, सुरक्षा संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में उपयोग के लिए आवश्यक समझे जाने वाले जंगल में कोई भी 10 हेक्टेयर या ‘वामपंथी उग्रवाद’ से प्रभावित वन भूमि में पांच हेक्टेयर के क्षेत्र को भी फॉरेस्ट एक्ट से छूट दी गयी है।

सड़कों और रेलवे के किनारे स्थित बस्तियों और प्रतिष्ठानों को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए प्रस्तावित 0.10 हेक्टेयर वन भूमि के लिए भी इसी तरह की छूट दी गई है।

याचिकाकर्ताओं ने इसी संशोधन अधिनियम को चुनौती दी है।

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