बच्चे को गोद लेने के अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है-दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बच्चे को गोद लेने के अधिकार (right to adopt a child) को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है और भावी दत्तक माता-पिता के पास यह चुनने का कोई अधिकार नहीं है कि वह किसे गोद लेगा।
अदालत ने दो या दो से अधिक बच्चों वाले दंपतियों को केवल विशेष जरूरतों वाले (special needs) या हार्ड टू प्लेस वाले बच्चों को गोद लेने की अनुमति दी।
हार्ड टू प्लेस ऐसे बच्चे होते हैं जिन्हें शारीरिक या मानसिक दिव्यांगता, शारीरिक या मानसिक बीमारी के खतरों आदि के कारण गोद लिए जाने की संभावना नहीं होती है।
अदालत ने माना कि गोद लेने की प्रक्रिया बच्चों के कल्याण के लिए है और भावी दत्तक माता-पिता (prospective adoptive parents: PAPs) के अधिकारों को इस पर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।
उच्च न्यायालय का निर्णय उन लोगों की याचिकाओं पर आया है जिनके दो या दो से अधिक अपने बच्चे (बायोलॉजिकल चिल्ड्रेन) है, जिन्होंने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के अनुसार तीसरे बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया था।
उनके आवेदन के लंबित रहने के दौरान, दत्तक ग्रहण नियम, 2022 लाया गया। इसके अनुसार तीन या अधिक बच्चों के बजाय, अब दो या अधिक बच्चों वाले दंपत्ति केवल विशेष जरूरतों वाले (special needs) या हार्ड टू प्लेस वाले बच्चों को गोद लेने का विकल्प चुन सकते हैं।