सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को रद्द किया
राजनीतिक दलों की फंडिंग के स्रोतों के बारे में मतदाताओं के सूचना के अधिकार को प्राथमिकता देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को चुनावी बांड योजना (Electoral Bonds Scheme: EBS) को रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित सूचना के अधिकार (right to information: RTI) का उल्लंघन है।
केंद्र सरकार द्वारा 2018 में पेश किए गए EBS ने व्यक्तियों और कॉर्पोरेट्स को भारतीय स्टेट बैंक से चुनावी बांड खरीदकर राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से फंड करने की अनुमति दी थी।
अदालत ने सर्वसम्मति से माना कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों और उनके धन के स्रोतों के बारे में जानकारी पाने का अधिकार है। अदालत ने यह भी माना कि RTI को केवल अनुच्छेद 19(2) के आधार पर मना किया जा सकता है, जो वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ मामलों में उचित प्रतिबंध की बात करता है। अदालत ने कहा, इसमें प्रतिबंध के तौर पर काले धन पर अंकुश लगाना शामिल नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाना एक वैध उद्देश्य है, लेकिन यह इस योजना द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के समानुपाती नहीं है। इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि यह योजना चुनावी फंडिंग में काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र साधन नहीं है। अन्य विकल्प कम प्रतिबंधात्मक हैं और इस उद्देश्य को पूरा करते हैं।
योजना को वैध मानने के लिए सरकारी योजना को अनिवार्य रूप से तीन पहलुओं को पूरा करना होगा।
यह अदालत के आनुपातिकता परीक्षण पर आधारित था, जो निजता के अधिकार (right to privacy) पर केएस पुट्टास्वामी मामले में 2017 के फैसले में निर्धारित किया गया था।
पुट्टास्वामी फैसले में अदालत ने कहा था कि सूचनात्मक गोपनीयता के अधिकार (right to informational privacy) में राजनीतिक संबद्धता (political affiliation) भी शामिल है।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29C के तहत राजनीतिक दलों को एक वित्तीय वर्ष में उनके द्वारा प्राप्त चंदे का विवरण देते हुए एक रिपोर्ट तैयार करने की आवश्यकता होती है। पार्टियों को इस रिपोर्ट में 20,000 रुपये से अधिक के सभी चंदा की घोषणा करनी होती है, और यह निर्दिष्ट करना होगा कि क्या वे व्यक्तियों से प्राप्त हुए थे या कंपनियों से।