केरल सरकार ने जंगली सूअरों को वर्मिन घोषित करने के लिए केंद्र से आग्रह किया
केरल विधानसभा ने 14 फरवरी को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से राज्य में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष की समस्या से निपटने के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की प्रासंगिक धाराओं में संशोधन करने का आग्रह किया।
मुख्य तथ्य
वर्ष 1972 के अधिनियम की धारा 11 जंगली जानवरों के शिकार को रेगुलेट करती है। धारा के खंड (1)(A) के अनुसार, किसी राज्य का मुख्य वन्यजीव वार्डन (Chief Wildlife Warden: CWLW) एक्ट की अनुसूची I (स्तनधारी) में लिस्टेड जानवरों के शिकार या हत्या की अनुमति दे सकता है।
हालांकि, वह केवल अनुसूची I (स्तनधारी) में लिस्टेड ऐसे जंगली जानवर की हत्या का आदेश दे सकता है यदि वह मानव जीवन के लिए खतरनाक हो गए हों या इतने विकलांग या बीमार हो गए हों कि उन्हें ठीक नहीं किया जा सकता।
यह धारा CWLW को ऐसे जंगली जानवर को भी मारने का आदेश देने की शक्ति देती है, यदि उसे पकड़ने के बाद काबू नहीं किया जा सकता है या कहीं अन्य स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
केरल सरकार धारा 11 (1) (A) में संशोधन चाहता है ताकि CWLW की उपर्युक्त शक्तियों को मुख्य वन संरक्षकों (CCF) को सौंपा जा सके।
वर्मिन जानवर
केरल यह भी चाहता है कि केंद्र सरकार वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 के अनुसार जंगली सूअर (wild boar) को वर्मिन जानवर (vermin) घोषित करे।
इस धारा के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी जंगली जानवर को किसी क्षेत्र/राज्य में कुछ समय के लिए वर्मिन के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
किसी जानवर को वर्मिन तब घोषित किया जाता है जब वह लोगों की जान और फसलों के लिए खतरा पैदा करता है।
बता दें कि 2015 में एक साल के लिए बिहार के 20 जिलों में नीलगाय को वर्मिन घोषित किया गया था। केंद्र ने 2019 में शिमला नगर पालिका में बंदरों (रीसस मकाक) को वर्मिन घोषित करने के लिए “कृषि के बड़े पैमाने पर विनाश” को आधार बताया था।