22वें विधि आयोग ने “आपराधिक मानहानि” को क्रिमिनल लॉ में बनाए रखने की सिफारिश की है
22वें विधि आयोग ने 285वीं रिपोर्ट में, सिफारिश की है कि आपराधिक मानहानि (criminal defamation) को भारत में क्रिमिनल लॉ में बनाए रखा जाना चाहिए।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य
इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि लोगों के सभी बयान और प्रकाशन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा के योग्य नहीं हैं।
आयोग ने कहा कि प्रतिष्ठा का अधिकार ( right to reputation) संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार और गरिमा के साथ जीने का अधिकार) का एक पहलू है जिसे “अपमानजनक बयान और लांछन से पर्याप्त सुरक्षा” प्रदान करने की आवश्यकता है।
आयोग ने यह भी कहा है कि किसी के रेप्युटेशन को खतरे में डालने की अनुमति सिर्फ इसलिए नहीं दी जा सकती क्योंकि व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। इस बहाने दूसरों की भावनाओं को आहत करने करने का अधिकार नहीं है।
यह भी कोई भी अधिकार पूर्णता लिए नहीं होता है और समाज को शांतिपूर्ण और रहने योग्य बनाने के लिए राइट टू रेप्यूटेशन और राइट टू फ्री स्पीच के मध्य संतुलन जरुरी है।
मानहानि और भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023, जिसे अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है, में मानहानि को एक दंडात्मक अपराध के रूप में बनाए रखा गया है, हालांकि इसके लिए समुदाय की सेवा करने करने की एक नयी सजा देने का प्रावधान भी किया गया है।
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता की धारा 356 के तहत, मानहानि से संबंधित IPC की धारा 499 और 500 को शामिल किया गया है और सामुदायिक सेवा की सजा को जोड़ा गया है।
नए कानून के तहत, जो कोई भी किसी दूसरे की मानहानि करेगा, उसे दो साल तक की साधारण कारावास की सजा या जुर्माना, या दोनों या सामुदायिक सेवा से दंडित किया जा सकता है।
सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि को अपराध मानने वाले संवैधानिक प्रावधान की चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था, यह मानते हुए कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध था।
शीर्ष अदालत ने यह भी पाया था कि दूसरे की गरिमा का सम्मान करना एक संवैधानिक कर्तव्य है।