राज्य वित्त और उधारी
सुप्रीम कोर्ट 12 जनवरी को केरल द्वारा स्टेट फाइनेंस पर दायर एक याचिका पर सुनवाई करने पर सहमत हुआ। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार शासन के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रही है और राज्य के वित्त में हस्तक्षेप करके “अल्प संसाधनों वाले छोटे राज्यों की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान” पहुंचा रही है।
केरल ने कहा कि केंद्र ने मनमाने तरीके से राज्य पर नेट उधारी सीमा (net borrowing ceiling: NBC) लगा दी है, जिससे खुले बाजार सहित सभी स्रोतों से उधार लेना मुश्किल हो गया है।
केंद्र ने राज्य पर भारत के बाहर से कर्ज लेने पर भी शर्तें लगा दी हैं। राज्य सरकार ने यह भी कहा कि राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम, 2003 में किए गए संशोधन, “राज्य के विधायी डोमेन” में अतिक्रमण है, क्योंकि ‘राज्य का सार्वजनिक ऋण’ संविधान के 246 अनुच्छेद के तहत सातवीं अनुसूची में विशेष रूप से राज्य सूची का विषय है।
2017 में, राज्य सरकार की संस्थाओं को कुछ शर्तों को पूरा करने पर विदेशी द्विपक्षीय फंडिंग एजेंसियों से सीधे उधार लेने की अनुमति दी गई थी।
अपने राजकोषीय घाटे (राजस्व की तुलना में व्यय की अधिकता) को पूरा करने के लिए राज्य सरकार बाजार से भी उधार ले सकती है। इसके लिए राज्य सरकार स्टेट डेवलपमेंट लोन (SDLs) के तहत बांड जारी करके उधार लेती हैं।
बाजार उधार आम तौर पर उनके कुल उधार का 75 प्रतिशत से अधिक होता है। शेष घाटे को केंद्र से ऋण लेकर वित्त पोषित किया जाता है।
राज्य संविधान के अनुच्छेद 293(3) के तहत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित वार्षिक सीमा से अधिक उधार नहीं ले सकते।
लेकिन राज्यों को ऋण और एडवांस लेने तथा अपनी संस्थाओं द्वारा जारी किए गए बांड की गारंटी देने के लिए केंद्र से पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। इन सबके कारण कुछ राज्यों की
ऑफ-बैलेंस शीट उधार को रिपोर्ट नहीं की जाती है। इससे नेट उधार सार्वजनिक नहीं हो पाता।