ट्रिब्यूनल्स सरकार को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं-सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अपने शासकीय कानूनों के सख्त मापदंडों के तहत काम करने वाले ट्रिब्यूनल्स सरकार को नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं। नीति बनाना न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र में नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल एक अर्ध-न्यायिक निकाय भी है, जो गवर्निंग कानून में निर्धारित मापदंडों के भीतर कार्य करता है। यह नीति बनाने के लिए जिम्मेदार संस्था यानी सरकार को किसी विशेष तरीके से नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट इस सवाल पर विचार कर रही थी कि क्या आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल (AFT) सरकार को “जज एडवोकेट जनरल” के पद को भरने के लिए एक नीति बनाने का निर्देश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट की शक्तियां प्राप्त हैं। ट्रिब्यूनल के पास सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ नहीं हैं। यहां तक कि उच्च न्यायालय भी संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए सरकार या किसी विभाग को कोई विशेष नीति बनाने का निर्देश नहीं दे सकते हैं।
ट्रिब्यूनल्स के बारे में
गौरतलब है कि ट्रिब्यूनल्स कानून द्वारा स्थापित न्यायिक या अर्ध-न्यायिक संस्थाएँ (quasi-judicial institutions) हैं।
1976 में, 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 323A और 323B को भारत के संविधान में शामिल किया गया था।
अनुच्छेद 323A ने संसद को लोक सेवकों की भर्ती और सेवा शर्तों से संबंधित मामलों के निर्णय के लिए एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर) गठित करने का अधिकार दिया।
अनुच्छेद 323B में कुछ विषयों को निर्दिष्ट किया गया है जिनके लिए संसद या राज्य विधानसभाएं कानून बनाकर ट्रिब्यूनल का गठन कर सकती हैं।
वर्तमान में, ट्रिब्यूनल्स को उच्च न्यायालयों के विकल्प के रूप में और उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ, दोनों के रूप में बनाया गया है।