एथिक्स समिति की सिफारिश पर तृणमूल सांसद को लोकसभा से निष्कासित किया गया

लोकसभा की आचार समिति (Ethics committee) ने ”अनैतिक आचरण” और ”विशेषाधिकारों के उल्लंघन” के लिए “पैसा लेकर सवाल पूछने” (cash for query) के मामले में तृणमूल कांग्रेस के सांसद (सांसद) को 17वीं लोकसभा से निष्कासित करने की सिफारिश की।

इसके पश्चात उन्हें 8 दिसंबर को उन्हें लोक सभा से निष्कासित कर दिया गया।

सदस्यों के नैतिक आचरण की निगरानी करने और इसमें संदर्भित ‘अनैतिक आचरण’ के मामलों की जांच करने के लिए 2000 में लोकसभा की एथिक्स समिति का गठन किया गया था।

यह समिति अन्य सदस्यों द्वारा सदन के सदस्यों के खिलाफ दायर की गई शिकायतों की जांच करती है। साथ ही लोक सभा के किसी सदस्य के माध्यम से कोई अन्य व्यक्ति भी (जो सदस्य नहीं है) भी शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके अलावा लोक सभा अध्यक्ष द्वारा रिफरेन्स की गयी शिकायत पर भी यह समिति विचार करती है।

समिति किसी शिकायत की जांच करने का निर्णय लेने से पहले प्रथम दृष्टया जांच करती है और अपनी रिपोर्ट लोक सभा अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है। वह इसे विचार के लिए सदन के समक्ष प्रस्तुत करता है।

विशेषाधिकार समिति या विशेष जांच समिति किसी सदस्य के खिलाफ अधिक गंभीर आरोपों की जांच करती है।

1951 में, एक विशेष समिति ने एक सदस्य को वित्तीय लाभ के बदले में प्रश्न पूछकर व्यावसायिक हित को बढ़ावा देने का दोषी पाया।

इसी तरह एक विशेष समिति ने 2005 के ‘क्वेरी के बदले नकद‘ घोटाले की जांच की थी, जहां लोकसभा के 10 सांसदों को निष्कासन की सिफारिश की गई थी। 

अनुच्छेद 101 के तहत संविधान किसी सांसद द्वारा सीट खाली करने के आधारों का प्रावधान करता है। इनमें स्वेच्छा से सदन की सदस्यता का त्यागपत्र, अयोग्य ठहराए जाने पर तथा सदन की बिना अनुमति से  60 बैठकों तक सदन से लगातार अनुपस्थिति शामिल हैं।

वैसे, संविधान में किसी सांसद के निष्कासन का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।

राजा राम पाल बनाम माननीय अध्यक्ष (2007) मामले में, जिसमें 2005 के ‘कैश फॉर क्वेरी’ घोटाले की सुनवाई की गयी थी, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 101 की व्याख्या करके निष्कासन को एक आधार के रूप में शामिल करके विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिए अपने सदस्यों को निष्कासित करने की संसद की शक्ति को बरकरार रखा था

error: Content is protected !!