डायरेक्ट लिस्टिंग

सरकार ने हाल ही में कुछ भारतीय कंपनियों को चुनिंदा विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर डायरेक्ट लिस्ट होने की अनुमति दी है, जिससे इन कंपनियों को ग्लोबल कैपिटल स्रोतों तक पहुंचने का अवसर मिलेगा।

एक अधिसूचना में, कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) ने कहा कि कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2020 में घोषित प्रावधान 30 अक्टूबर को लागू हुआ

गौरतलब है कि जुलाई 2023 में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि सरकार ने लिस्टेड और नॉन-लिस्टेड घरेलू कंपनियों को अपने इक्विटी शेयरों को सीधे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC), अहमदाबाद में सूचीबद्ध/लिस्ट करने में सक्षम बनाने का निर्णय लिया गया

इस संशोधन ने केंद्र सरकार को पब्लिक कंपनियों के कुछ वर्गों को विदेशों में कुछ प्रकार की प्रतिभूतियों को लिस्ट करने की अनुमति देने का अधिकार दिया। इसका  मतलब है कि घरेलू पब्लिक कंपनियों के कुछ वर्गों को GIFT IFSC, अहमदाबाद सहित निर्धारित विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध किया जा सकता है

डायरेक्ट लिस्टिंग और IPO के बीच प्राथमिक अंतरों में से एक यह है कि एक फर्म एक विशिष्ट IPO के माध्यम से अपने स्टॉक के नए शेयर जारी करती है, जबकि डायरेक्ट लिस्टिंग में कंपनियां केवल अपने मौजूदा शेयर बेचती हैं यानी कोई नया शेयर जारी नहीं करती है।

जो कंपनियाँ डायरेक्ट लिस्टिंग चुनती हैं, वे आम तौर पर अधिक फण्ड जुटाने के लिए मार्केट नहीं आती हैं, इसलिए उन्हें अधिक शेयर जारी करने की आवश्यकता नहीं होती है।

IPO की तुलना में डायरेक्ट लिस्टिंग में काफी कम लागत आती है क्योंकि फर्मों को उनके लिए अंडरराइटर्स को नियुक्त करने और भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसके बजाय, जिन शेयरधारकों के पास पहले से ही व्यावसायिक स्टॉक है, वे उन शेयरों को सीधे आम जनता को बेच सकते हैं। कंपनियां डायरेक्ट लिस्टिंग से लॉक-इन अवधि से बच सकती हैं।

एक मानक IPO की लिस्टिंग के बाद, अक्सर ऐसा समय आता है जब मौजूदा शेयरधारक खुले बाजार में अपना स्टॉक बेचने में असमर्थ होते हैं।

डायरेक्ट लिस्टिंग में एक अंडरराइटर शामिल नहीं होता है, इस प्रकार जो व्यवसाय इस रणनीति के साथ चलते हैं उन्हें अपने दम पर जनता से अपील करनी चाहिए। यह अक्सर दर्शाता है कि कंपनियां अपने लक्षित बाजार पर केंद्रित हैं, उनके पास एक मजबूत और प्रसिद्ध ब्रांड है, और उनके पास समझने योग्य व्यवसाय योजना है।

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