अटलांटिफिकेशन और आर्कटिक डाइपोल
पिछले दशकों में आर्कटिक महासागर के बर्फ के गायब होने का एक कारण अटलांटिक महासागर से अधिक गर्म जल का उच्च अक्षांश वाले आर्कटिक महासागर में आना है। इस प्रक्रिया को “अटलांटिफिकेशन” (atlantification) कहा जाता है।
दूसरी ओर, आर्कटिक डाइपोल (Arctic Dipole) नामक मौसमी पैटर्न वायुमंडलीय पवन के पैटर्न का कारण बनता है जो फ्रैम स्ट्रेट के पार और बैरेंट्स सागर के भीतर उत्तरी अटलांटिक प्रवाह को नियंत्रित करता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्कटिक महासागर के जल के आर्कटिक में परिसंचरण में परिवर्तन लाता है।
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए नए शोध से पता चलता है कि 2007 के बाद से आर्कटिक महासागर में समुद्री बर्फ के घटने की रुके हुए ट्रेंड के पीछे क्या कारण है। वैज्ञानिकों के अध्ययन से संकेत मिलता है कि समुद्री बर्फ में फिर से मजबूत गिरावट तब शुरू होती है जब आर्कटिक द्विध्रुव यानी आर्कटिक डाइपोल अपने मौजूदा पैटर्न को खुद को उलट देती है।
आर्कटिक डाइपोल
आर्कटिक डाइपोल हवाओं का एक लघु पैमाने का, रीजनल पैटर्न है जिसका वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है। 1979 से 2006 तक, आर्कटिक डाइपोल “ऋणात्मक” यानी नेगेटिव चरण में था, जिसमें हवाएँ उत्तरी अमेरिका पर वामावर्त (counterclockwise) और यूरेशिया पर दक्षिणावर्त (clockwise) घूम रही थीं।
इसने ग्रीनलैंड और नॉर्वे के स्वालबार्ड द्वीपसमूह के बीच समुद्र की एक संकीर्ण पट्टी, फ्रैम स्ट्रेट के माध्यम से आर्कटिक में अधिक अटलांटिक पानी लाया।
उस समय अवधि के दौरान, ग्रीष्मकाल में समुद्री बर्फ का दायरा साल-दर-साल तेजी से सिकुड़ता गया और प्रति दशक लगभग 1 मिलियन वर्ग किलोमीटर की दर से लुप्त हो गया। वर्ष 2007, जो आर्कटिक समुद्री बर्फ के नुकसान के लिए एक रिकॉर्ड तोड़ने वाला वर्ष था, आर्कटिक डाइपोल के इस “नेगेटिव” चरण के अंत को चिह्नित करता है।
वहीं 2007 से 2021 तक उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया पर हवाएँ इस तरह से घूम रही थीं कि ये आर्कटिक महासागर में गर्म अटलांटिक जल के प्रवाह को कम कर दिया था। इससे उस अवधि के दौरान समुद्री बर्फ के नुकसान की दर को धीमा करने में मदद मिली -हालांकि वायुमंडलीय वार्मिंग में भी वृद्धि जारी रही।
तब से 2021 तक, पूरे आर्कटिक में समुद्री बर्फ के नष्ट होने की दर धीमी हो गई, प्रति दशक केवल लगभग 70,000 वर्ग किलोमीटर की कमी आई। लेकिन यह अवधि कुछ ही वर्षों में समाप्त हो सकती है और “अटलांटिफिकेशन” की प्रक्रिया के तहत अटलांटिक का गर्म जल फिर से आर्कटिक में पहुंचना शुरू जाएगा जो आर्कटिक समुद्री बर्फ के नुकसान को तेज कर देगा।