Xenotransplantation: मानव शरीर में 32 दिनों के बाद भी प्रत्यारोपित सुअर की किडनी काम कर रही है
NYU लैंगोन हेल्थ के सर्जनों ने जेनेटिकली इंजीनियर्ड सुअर की किडनी को एक ब्रेन डेड व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया है और यह 32 दिनों के बाद भी अच्छी तरह से काम कर रही है। यह किसी इंसान में जीन-एडिटेड सुअर की किडनी के काम करने का सबसे लम्बा रिकॉर्ड है। साथ ही ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए अंगों की वैकल्पिक और निरंतर उपलब्धता की दिशा में एक सफल प्रयास भी है।
यह उपलब्ध दर्शाती है कि सुअर की किडनी – केवल एक जेनेटिकल मॉडिफिकेशन के द्वारा और एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन या डिवाइस के बिना शरीर द्वारा रिजेक्ट हुए बिना कम से कम 32 दिनों तक मानव किडनी के फंक्शन्स को परफॉर्म कर सकती है।
ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन/xenotransplantation
ऑर्गन के एनिमल-से-ह्यूमन ट्रांसप्लांट (ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन/xenotransplantation) के प्रयास दशकों से विफल रहे हैं क्योंकि लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली ने बाहर ले लगाए गए ऊतकों (tissue) पर हमला किया है। अब शोधकर्ता जेनेटिकली मॉडिफायड सूअरों का उपयोग कर रहे हैं ताकि उनके अंग अधिक मानव जैसे हों । पिछले साल, मैरीलैंड विश्वविद्यालय के सर्जनों ने सुअर के दिल वाले एक मरते हुए आदमी को बचाने की कोशिश की – और वह दो महीने तक जीवित रहा।
ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन कोई भी ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मानव प्राप्तकर्ता में गैर-मानव स्रोतों से जीवित कोशिकाओं, ऊतकों, या अंगों का प्रत्यारोपण, आरोपण शामिल होता है।
जैसा कि ऊपर कहा गया कि ज़ेनोट्रांसप्लांट की दिशा में सबसे पहली और बड़ी बाधा तथाकथित हाइपरएक्यूट रिजेक्शन को रोकना है, जो आम तौर पर किसी जानवर के अंग के मानव अंग क्रिया प्रणाली से जुड़ने के कुछ ही मिनटों बाद होती है।
अल्फा-गैल नामक बायोमोलेक्यूल को एन्कोड करने वाले जीन को मनुष्यों द्वारा सुअर के अंगों की तेजी से रिजेक्ट करने के लिए जिम्मेदार माना गया है। NYU लैंगोन के शोधकर्ताओं ने इस जीन को “नॉक आउट” करके – सूअर किडनी को तत्काल अस्वीकृति से बचाया है।
अल्फा-गैल सिंड्रोम (Alpha-Gal Syndrome)
अल्फा-गैल सिंड्रोम (Alpha-Gal Syndrome) एक टिक-जनित बीमारी है जो गाय, हिरण, सूअर या बकरियों के मांस सहित रेड मीट खाने से एलर्जी प्रतिक्रिया का कारण बनती है।