इंक्रीमेंटल कैश रिजर्व रेश्यो (ICRR) और इसका प्रभाव
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 10 अगस्त को बैंकों को 19 मई से 28 जुलाई के बीच अपनी जमा राशि में वृद्धि पर 10 प्रतिशत का वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (Incremental Cash Reserve Ratio: ICRR) बनाए रखने के लिए कहा है ।
ICRR क्या है?
- वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (ICRR) पर आगे पढ़ने से पहले, हमें पहले नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को समझना होगा। बैंकों को अपनी जमा राशि और कुछ अन्य लायबिलिटी के एक निश्चित अनुपात के बराबर लिक्विड नकदी RBI के पास रखनी होती है।
- यह अर्थव्यवस्था में कैश को नियंत्रित करने के लिए RBI के पास उपलब्ध एक हथियार है और यह बैंक स्ट्रेस की अवधि में बफर के रूप में भी कार्य कर सकता है।
- वर्तमान में बैंकों को अपनी नेट डिमांड और टाइम लायबिलिटी (Net Demand and Time Liabilities: NDTL) का 4.5 प्रतिशत RBI के पास CRR के रूप में बनाए रखना आवश्यक है।
- आरबीआई के पास सिस्टम में अतिरिक्त नकदी की अवधि में CRR के अलावा ICRR लागू करने का विकल्प है और केंद्रीय बैंक अब इसका प्रयोग कर रहा है।
- इसका मतलब यह है कि बैंकों को अब आरबीआई के पास अधिक लिक्विड नकदी जमा करनी होगी।
- RBI ने अपनी मौद्रिक नीति में कहा है कि 12 अगस्त, 2023 से, सभी अनुसूचित बैंकों को 19 मई, 2023 और 28 जुलाई 2023 के बीच अपनी NDTL में वृद्धि के 10 प्रतिशत के बराबर अतिरिक्त नकद आरक्षित अनुपात बनाए रखना होगा।
- आरबीआई ने 2,000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी, जिससे बैंकों में पर्याप्त नकदी जमा हुआ है। RBI का इरादा सिस्टम से इस अधिक नकदी में से कुछ को अवशोषित करना है।
- इस कदम के पीछे आरबीआई का मुख्य उद्देश्य इस उपाय के द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है। जैसे-जैसे लिक्विडिटी खत्म होती जाएगी, बैंकों के पास उधार देने के लिए कम पैसा होगा, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो जाएगी, जिससे कीमतें कम हो जाएंगी।
- अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति कम होने से अल्पकालिक ब्याज दरें ऊंची हो सकती हैं। यह मुद्रास्फीति को कम करने का एक और उपाय है।