Tharosaurus indicus: भारत में डायनासोर की नई प्रजाति?

राजस्थान के जैसलमेर में 167 मिलियन वर्ष पुराने लंबी गर्दन वाले, वनस्पति खाने वाले डाइक्रायोसॉरिड डायनासोर (dicraeosaurid dinosaur) के जीवाश्म अवशेष खोजे गए हैं।

‘थारोसॉरस इंडिकस’ (Tharosaurus indicus)

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक खोजों का पता लगाने में कामयाब रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने थार रेगिस्तान और मूल देश जहां अवशेष पाए गए हैं, का जिक्र करते हुए डायनासोर के इस जीवाश्म का नाम ‘थारोसॉरस इंडिकस’ (Tharosaurus indicus) रखा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि ये जीवाश्म डायनासोर की एक नई प्रजाति के हैं, जो मनुष्य के लिए अज्ञात है।इन जीवाश्मों को 2018 में जैसलमेर क्षेत्र से एकत्र किया गया था और उपर्युक्त दोनों संस्थानों के छह शोधकर्ताओं के एक समूह ने उनका अध्ययन करने में लगभग पांच साल बिताए।

शोधकर्ताओं ने कहा कि चूंकि जीवाश्म लगभग 167 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानों में पाए गए थे, इसलिए यह भारतीय सॉरोपॉड ( Indian sauropod ) को न केवल सबसे पुराना ज्ञात डाइक्रायोसॉरिड (dicraeosaurid) बनाता है, बल्कि विश्व स्तर पर सबसे पुराना डिप्लोडोकोइड/diplodocoid  (व्यापक समूह जिसमें डाइक्रायोसॉरिड्स और अन्य निकट संबंधी सॉरोपॉड शामिल हैं) भी बनाता है।

इससे पहले, डाइक्रायोसॉरिड डायनासोर के जीवाश्म उत्तर और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और चीन में खोजे गए थे लेकिन भारत में कभी नहीं।

भारत में कई जगहों से डायनासोर के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं।  कुछ वर्ष पहले शोधकर्ताओं ने मेघालय में पश्चिम खासी हिल्स जिले के आसपास के क्षेत्र से लगभग 100 मिलियन वर्ष पुराने सॉरोपोड्स नामक लंबी गर्दन वाले डायनासोर के जीवाश्म हड्डी के टुकड़ों की पहचान की थी।

इसी तरह मध्य भारत की नर्मदा घाटी में स्थित लामेटा फार्मेशन (Lameta Formation) ,  उत्तर-क्रेटेशियस काल के डायनासोर के कंकालों और अंडों के जीवाश्मों के लिए प्रसिद्ध है, जो लगभग 145 से 66 मिलियन वर्ष पहले तक थे।

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