केरल में पोक्कली चावल के कृषि क्षेत्र में कमी

हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में पोक्कली चावल (Pokkali cultivation) की खेती के तहत कृषि भूमि लगातार कम होती गई है। दशकों पहले केरल में लगभग 24,000 हेक्टेयर में इसकी खेती होती थी, लेकिन 2014 में घटकर 6,000 हेक्टेयर हो गयी।

अब केवल लगभग 1,000 हेक्टेयर में एर्नाकुलम, अलाप्पुझा और त्रिशूर में संयुक्त रूप से खेती की जा रही है।

पोक्कली चावल धान की GI-टैग वाली किस्म है जो लवण सहिष्णु (saline tolerant) है।

पोक्कली की खेती के लिए उर्वरक या कीटनाशक के उपयोग की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक विशिष्ट चक्रीय फसल पैटर्न का पालन करती है।

इस धान की खेती अप्रैल से अक्टूबर तक की जाती है जब मानसून की बारिश से पानी में नमक की मात्रा कम हो जाती है, जबकि नवंबर और मार्च के बीच उसी खेत में झींगे की खेती की जाती है जब पानी में लवणता अधिक होती है।

अक्टूबर में पोक्कली की कटाई के बाद, डंठल को ऐसे ही छोड़ दिया जाता है, और डंठल की सड़न प्रक्रिया को तेज करने के लिए खेत में पानी भर दिया जाता है, जो झींगा के लिए फ़ीड के रूप में कार्य करता है, जबकि झींगे की मृत त्वचा और झींगे का मल धान के लिए खाद बनाते हैं।

वह जीन जो पोक्कली को पानी में लवण की मात्रा का सामना करने में सक्षम बनातीहै, उसे साल्टोल (saltol) कहा जाता है। यह जीन आइसोलेटेड है और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय ब्रीडिंग कार्यक्रमों के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है।

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