जिला न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है: सुप्रीम कोर्ट
अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि जिला न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसलिए कार्यपालिका और विधायिका से न्यायिक स्वतंत्रता के लिए न्यायपालिका को उसके वित्त मामले में निर्णय करने का अधिकार है।
बता दें कि केशवानंद भारती मामले में 1973 के ऐतिहासिक फैसले में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा माना गया था।
क्या कहा सर्वोच्च न्यायालय ने?
मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट खंडपीठ ने कहा कि जिला न्यायपालिका, ज्यादातर मामलों में, ऐसी अदालत भी है जो आम लोगों के लिए सबसे अधिक सुलभ है।
अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ द्वारा दायर एक याचिका पर दिए गए इस निर्णय ने जिला न्यायपालिका के सेवा नियमों में संशोधन करने और पेंशन, अतिरिक्त पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों के बकाया के भुगतान के लिए कई दिशा-निर्देश दिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कि न्यायाधीश राज्य के कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि सार्वजनिक पद के धारक हैं, जिनके पास संप्रभु न्यायिक शक्ति है। इस अर्थ में, वे केवल विधायिका के सदस्यों और कार्यपालिका में मंत्रियों के बराबर हैं।
न्यायालय का निर्णय न्यायालय द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) पी.वी. रेड्डी की अध्यक्षता वाले दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर आधारित हैं।
जिला न्यायाधीश का न्यायालय
सिविल क्षेत्राधिकार का प्रमुख न्यायालय जिला स्तर पर जिला न्यायाधीश का न्यायालय है।
इसके पास मूल और अपीलीय क्षेत्राधिकार, दोनों की शक्तियां हैं। जिला न्यायाधीश के पास पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार भी (revisional Jurisdiction) है।
जिला न्यायाधीश किसी मामले को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर सकता है।
जिला न्यायाधीश न्यायिक अधिकारियों के बीच प्रशासनिक शक्ति सौंप आवंटित कर सकता है।