SENGOL: नए संसद भवन भवन में ऐतिहासिक व पवित्र “सेंगोल” की स्थापना की जाएगी
नए संसद भवन में न्यायपूर्ण और निष्पक्ष राजकीय शासन (sceptre) के पवित्र प्रतीक सेंगोल (Sengol) को ग्रहण कर उसे नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा। इस सेंगोल को लोकसभाध्यक्ष की पीठ के बगल में स्थापित किया जाएगा।
सेन्गोल (Sengol)
सेंगोल (Sengol) शब्द तमिल शब्द “सेम्माई” (Semmai) से लिया गया है जिसका अर्थ है नीतिपरायणता या धर्मपरायणता। ‘न्याय’ के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल दृष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके सेन्गोल के शीर्ष पर विराजमान हैं।
नए सेंगोल की स्थापना के लिए तमिलनाडु के सभी 20 आधीनम के अध्यक्ष इस शुभ अवसर पर आकर इस पवित्र अनुष्ठान की पुनर्स्मृति में अपना आशीर्वाद भी प्रदान कर रहे हैं।
इस पवित्र समारोह में 96 साल के श्री वुम्मिडी बंगारु चेट्टी जी भी सम्मिलित होंगे, जो इसके निर्माण से जुड़े रहे हैं।
गौरतलब है कि यह वही सेंगोल है जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात को अपने आवास पर, कई नेताओं की उपस्थिति में स्वीकार किया था।
14 अगस्त, 1947 की रात को वह एक विशेष अवसर था, जब जवाहर लाल नेहरू ने तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेंगोल ग्रहण किया था। पंडित नेहरू के साथ सेंगोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।
चोल शासन से प्रेरित
आधिकारिक दस्तावेज के अनुसार, स्वतंत्रता से ठीक पहले, भारत के अंतिम वायसराय, लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से “उस समारोह के बारे में पूछा, जिसे ब्रिटिश से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में मनाया जाना चाहिए”।
पंडित नेहरू ने भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी से परामर्श करने गए, जिन्होंने उन्हें चोल राजवंश के दौरान किए गए एक समारोह के बारे में बताया, जिसमें एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता का हस्तांतरण महा-आयोजन के तहत किया जाता था।
सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को ‘सेंगोल’ इसलिए सौंपा जाता था ताकि वह अपनी प्रजा पर निष्पक्ष और न्यायपूर्ण ढंग से शासन करे।
(Note: This news was edited to correct the word: सेंगोल)