अनुसूचित जनजाति में संशोधन

मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा राज्य के मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने के लिए राज्य को निर्देश जारी किये जाने को गलत ठहराते हु भारत  के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा  कि 23 साल पुराने संविधान खंडपीठ के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी भी अदालत या राज्य के पास अनुसूचित जनजातियों की सूची को “जोड़ने, घटाने या संशोधित करने” की शक्ति नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मौखिक रूप से कहा कि एक उच्च न्यायालय के पास अनुसूचित जनजाति सूची में सीधे बदलाव करने की शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति को नामित करना राष्ट्रपति की शक्ति है।

महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद मामले में संविधान पीठ ने नवंबर 2000 में फैसला सुनाया था कि संविधान  राज्य सरकारों या अदालतों या न्यायाधिकरणों या किसी अन्य प्राधिकरण को अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची को रूपांतरित, संशोधित या बदलने का अधिकार नहीं देता है।

 इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अनुसूचित जनजातियों को निर्दिष्ट करते हुए अनुच्छेद 342 के खंड (1) के तहत जारी एक अधिसूचना को केवल संसद द्वारा बनाए जाने वाले कानून द्वारा संशोधित किया जा सकता है।   Ans (c)

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