कैबिनेट ने महाराष्ट्र के हिंगोली में LIGO-India-ग्रेविटेशनल-वेव डिटेक्टर के निर्माण को मंजूरी दी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 6 अप्रैल को महाराष्ट्र के हिंगोली जिले में 600 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से एक अत्याधुनिक लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरीज (LIGO)- गुरुत्वाकर्षण-तरंग डिटेक्टर (gravitational-wave detector) बनाने की परियोजना को मंजूरी दी।
प्रमुख तथ्य
इस डिटेक्टर का निर्माण 2030 तक पूरा होने की उम्मीद है।
LIGO-इंडिया का निर्माण परमाणु ऊर्जा विभाग और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा यू.एस. नेशनल साइंस फाउंडेशन और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों के साथ एक समझौता ज्ञापन के साथ किया जाएगा।
यह वेधशाला विश्व में अपनी तरह की तीसरी होगी। अन्य दो वेधशालाएं अमेरिका के लुइसियाना और वाशिंगटन में हैं जिन्हें ट्विन लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरीज (LIGO) कहा जाता है। हिंगोली स्थित LIGO-इंडिया अमेरिकी LIGO साथ मिलकर काम करेगी।
गुरुत्वाकर्षण-तरंग डिटेक्टर के लिए ऐसी साइट का चयन किया जाता है, जो समतल हो और भूकंपीय व्यवधानों से मुक्त हो।
LIGO के बारे में
LIGO एक विशाल L-आकार का उपकरण है। ‘L’ की प्रत्येक भुजा 4 किमी लंबी है। एक ही समय में प्रत्येक भुजा के माध्यम से दो लेजर पल्स छोड़ा जाता है, और वे एक दर्पण से टकराकर वापस परावर्तित होती हैं ।
LIGO डिटेक्टर जांचता है कि एक ही साथ दागी गयी पल्सेस एक ही समय में वापस आती हैं या नहीं। जब कोई गुरुत्वीय तरंग डिटेक्टर से होकर गुजरती है, तो पल्सेस के वापस आने में व्यवधान पैदा होता है और वापसी समय में हल्का अंतर आ जाता है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने, रिकॉर्ड करने और अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता इसका और अन्य संकेतों का उपयोग करते हैं।
जहां दो LIGO गुरुत्वाकर्षण तरंगों का अध्ययन कर सकते हैं, आकाश में उसके स्रोत के स्थान को बेहतर तरीके से जानने के लिए एक तीसरी वेधशाला की आवश्यकता होती है।
एक अधिक आदर्श सेटअप के लिए एक ही वेव को रिकॉर्ड करने के लिए चार वेधशालाओं की आवश्यकता होती है। इसके लिए, शोधकर्ता इटली और जापान में डिटेक्टरों की स्थापना और अपग्रेड कर रहे हैं।
क्या हैं गुरुत्वाकर्षण तरगें (Gravitational waves)?
गुरुत्वाकर्षण तरंगें ब्रह्मांड में बहुत भारी वस्तुओं द्वारा चरम वातावरण में उत्सर्जित होती हैं, जैसे कि जब ब्लैक होल टकराते हैं।
जिस तरह किसी वस्तु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश का उपयोग उसके विद्युत चुम्बकीय गुणों की जांच के लिए किया जा सकता है, उसी तरह गुरुत्वाकर्षण तरंगों का उपयोग स्रोत की गुरुत्वाकर्षण विशेषताओं की जांच के लिए किया जा सकता है।