सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह दर्द रहित मौत की सजा देने को लेकर विशेषज्ञ समिति बना सकता है
सुप्रीम कोर्ट (SC) की एक बेंच ने 21 मार्च, 2023 को केंद्र से अपराधियों को भारत में फांसी की सजा देने के तरीके पर फिर से विचार करने के लिए कहा।
न्यायालय ने यह भी कहा ऐसा तरीका अधिक मानवीय और गरिमापूर्ण हो सकता है।
प्रमुख तथ्य
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने अपराधियों को मौत की सजा देने के भारत के तरीके पर फिर से विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन पर भी विचार दिया।
न्यायालय ने केंद्र को संकेत दिया कि उसे कुछ अंतर्निहित डेटा की आवश्यकता है, जिसके आधार पर वह जांच कर सके कि क्या फांसी पर लटकाने का कोई और “मानवीय” तरीका है जिससे फांसी पर लटकाकर मौत की सजा को असंवैधानिक करार दिया जाये।
सुप्रीम कोर्ट एक अधिवक्ता द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फांसी पर लटकाकर मौत की सजा देने की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) में कहा गया है कि मौत की सजा पाए व्यक्ति को “उसकी मृत्यु होने तक फांसी से लटकाया जाएगा”।
बता दें कि वर्ष 2018 में केंद्र सरकार ने फांसी पर लटकाकर मौत के समर्थन में एक हलफनामा दाखिल किया था। इसने फायरिंग स्क्वॉड और घातक इंजेक्शन की तुलना में फांसी पर लटकाकर मौत के तरीके को “बर्बर, अमानवीय और क्रूर” नहीं पाया था।
सरकार ने अपनी बात को साबित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में कैदियों को घातक इंजेक्शन देकर मौत की सजा देने के कई उदाहरण पेश किये जिसमें व्यक्ति को असह्य दर्द का सामना करना पड़ा। सरकार ने यह भी कहा यदि लोगों को पता चल जाए तो इस घातक रसायन का दुरुपयोग किया जा सकता है।
सरकार ने फायरिंग दस्ते द्वारा मौत की सजा देने की भयावहता का भी उल्लेख किया था जिसमें दागे गए शॉट्स दिल से चुकने पर कैदी की दर्दनाक तरीके से धीरे-धीरे मौत हुई।
बचन सिंह केस
सरकार ने कहा कि मौत की रेयरेस्ट ऑफ़ थे रेयर मामलों में ही दी जाती है। वर्ष 2012 से 2015 के बीच सिर्फ तीन फांसी हुई है।
अदालत ने पहले स्पष्ट किया था कि वह मौत की सजा की संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठा रही है, जिसे दीना बनाम भारत संघ के फैसले और 1980 में बचन सिंह मामले में संवैधानिक ठहराया जा चुका है।
वर्ष 1982 में ‘बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य’ के ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 4:1 बहुमत के फैसले से मौत की सजा की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
बता दें की 2003 की अपनी 187वीं रिपोर्ट में, भारत के विधि आयोग ने सिफारिश की थी कि सीआरपीसी की धारा 354 (5) में संशोधन कर अभियुक्त की मृत्यु तक घातक इंजेक्शन द्वारा मौत की सजा देने का वैकल्पिक तरीका अपनाया जाये।
विश्व में फांसी देने के तरीके
एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, दुनिया भर के 55 देशों में अभी भी मौत की सजा बरकरार है।
फांसी से लटकाना मौत की सजा देने का सबसे प्रचलित रूप है।
कुछ देशों में अन्य तरीकों का भी पालन किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, प्रत्येक राज्य (27 राज्यों और अमेरिकी समोआ) में नसों में घातक इंजेक्शन लगाकर मौत की सजा दी जाती है।
बिजली करेंट से देशों में मौत की सजा देने का प्रचलन है।
चीन में फायरिंग स्क्वॉड द्वारा फांसी दिए जाती है।
सऊदी अरब अन्य तरीकों के अलावा सिर कलम करके मौत की सजा देतीहै।
भारत में, द एयर फ़ोर्स एक्ट, 1950, द आर्मी एक्ट 1950, और द नेवी एक्ट 1957 में कहा गया है कि मौत की सजा या तो मौत तक गर्दन से लटका कर या गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जाना चाहिए।