केरल में बैकग्राउंड रेडिएशन अधिक है, लेकिन खतरनाक स्तर को पार नहीं किया है: BARC
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के वैज्ञानिकों ने विकिरण पर एक अखिल भारतीय अध्ययन किया है और इसे जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रेडियोएक्टिविटी में प्रकाशित किया है।
स्टडी के मुख्य निष्कर्ष
केरल के कुछ हिस्सों में, बैकग्राउंड रेडिएशन का स्तर (background radiation levels) अनुमान से लगभग तीन गुना अधिक है। हालांकि इसके बावजूद यह स्वास्थ्य के लिए उच्च स्तर के खतरे वाला नहीं है। बैकग्राउंड रेडिएशन चट्टानों, रेत, या पहाड़ों जैसे प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित होता है।
विकिरण/रेडिएशन किसी अस्थिर तत्व के विघटित नाभिक (nucleus) से उत्पन्न होता है और यह कहीं से भी उत्सर्जित हो सकता है, जिसमें हमारे शरीर के अंदर से लेकर पदार्थ के घटक शामिल हैं।
गामा किरणें (Gamma rays) एक प्रकार की विकिरण हैं जो पदार्थ के माध्यम से बिना अवरोध के गुजर सकती हैं। हालांकि अत्यधिक ऊर्जावान होने के बावजूद ये तब तक हानिरहित होते हैं जब तक कि बड़ी मात्रा में सघन मात्रा में मौजूद न हों। वास्तव में यह आग की गर्मी के समान है जो तब तक सुखद महसूस कराती है जब तक जलाने वाली स्थिति न पैदा कर दे।
IAEA: अधिकतम रेडिएशन रिस्क स्तर
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) अधिकतम रेडिएशन रिस्क स्तर निर्धारित करती है और इसे भारत के परमाणु ऊर्जा केंद्र भी अपनाते हैं।
IAEA के अनुसार पब्लिक एक्सपोजर एक साल में 1 मिली-सीवर्ट (milli-Sievert) से अधिक नहीं होना चाहिए। वहीं जो लोग प्लांट में काम करते हैं उनके लिए एक साल में 30 मिली-सीवर्ट (milli-Sievert) से अधिक नहीं होना चाहिए।
वर्तमान अध्ययन में पाया गया कि भारत में गामा विकिरण की औसत नेचुरल बैकग्राउंड का स्तर 94 nGy/hr (नैनो ग्रे प्रति घंटा) (या मोटे तौर पर 0.8 मिलीसीवर्ट/वर्ष) था। 1986 में किए गए इस तरह के अंतिम अध्ययन ने इस तरह के विकिरण की गणना 89 nGy/hr की थी। 1 ग्रे 1 सीवर्ट के बराबर है।
कोल्लम में हाई रेडिएशन स्तर
वर्ष 1986 के अध्ययन में केरल के चावरा में 3,002 nGy/वार्षिक का उच्चतम रेडिएशन एक्सपोजर रिकॉर्ड किया गया था। वर्तमान अध्ययन में कोल्लम जिले (जहां चावरा स्थित है) में यह स्तर 9,562 nGy/hr, या लगभग तीन गुना अधिक था। यह प्रति वर्ष लगभग 70 milliGray के बराबर है, यानी किसी परमाणु संयंत्र में एक कर्मचारी के एक्सपोजर से थोड़ा अधिक है।
कोल्लम में हाई रेडिएशन स्तर की वजह मोनाजाइट रेत है, जिसमें थोरियम की मात्रा अधिक होती है, और यह कई वर्षों से परमाणु ईंधन के सतत उत्पादन के लिए भारत की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है।
दक्षिणी भारत में , ग्रेनाइट और बेसाल्टिक, ज्वालामुखीय चट्टान के अधिक होने की वजह से यूरेनियम भंडार से उच्च स्तर का रेडिएशन उत्सर्जित होता है।