Megha-Tropiques-1: इसरो ने पहली बार किसी उपग्रह को वायुमंडल में नियंत्रित री-एंट्री कराने में सफलता प्राप्त की
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पहली बार किसी उपग्रह को उसके जीवन काल की समाप्ति के बाद नियंत्रित तरीके से कक्षा से नीचे उतारने (controlled re-entry) में सफल रहा है।
प्रमुख तथ्य
मौसम उपग्रह मेघा ट्रॉपिक्स-1 (Megha-Tropiques-1) को 7 मार्च को अंतिम दो अभ्यासों के बाद वायुमंडल में प्रवेश कराया गया और फिर वायुमंडल में प्रवेश करते है ही प्रशांत महासागर के ऊपर जल गया।
मेघा ट्रॉपिक्स -1 भारतीय और फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसियों का एक संयुक्त मिशन था जिसे 2011 में PSLV से लॉन्च किया गया था।
उपग्रह का लक्षित मिशन जीवन केवल तीन वर्ष था, लेकिन यह लगभग एक दशक तक उष्ण कटिबंध में जल चक्र और ऊर्जा विनिमय पर डेटा प्रदान करता रहा।
हालांकि मिशन के अंत में इसमें अभी भी लगभग 125 किलोग्राम ऑन-बोर्ड ईंधन बचा हुआ था जिसका उपयोग नहीं हो पाया था। ये स्थिति खतरनाक हो सकती थी और आकस्मिक ब्रेक-अप के लिए जोखिम पैदा कर सकता था। प्रशांत महासागर में एक निर्जन स्थान में पूरी तरह से नियंत्रित वायुमंडलीय री-एंट्री प्राप्त करने के लिए यह बचा हुआ ईंधन पर्याप्त था। इसलिए इसरो ने वायुमंडल में प्रवेश करने की योजना बनाई थी।
यह पहली बार था जब इसरो ने री-एंट्री के लिए उपग्रह के डिज़ाइन नहीं किये जाने अंतरिक्ष मलबे बनने से रोकने के लिए इस तरह के मिशन को अंजाम दिया।
आमतौर पर, उपग्रहों को जीवन काल समाप्त होने के बाद उनकी कक्षा में छोड़ दिया जाता है और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण वे कई वर्षों के बाद वायुमंडल में नीचे आ जाते हैं।
जब उपग्रह वायुमंडल में फिर से प्रवेश करते हैं, तो घर्षण के कारण यह हजारों डिग्री सेल्सियस के अत्यधिक उच्च तापमान तक गर्म हो जाता है। हीट शील्ड के बिना, 99% उपग्रह जल जाता है चाहे वह नियंत्रित री- एंट्री में हो या अनियंत्रित स्थिति में हो।
केसलर सिंड्रोम
केसलर सिंड्रोम (Kessler syndrome) एक ऐसा परिदृश्य है जहां अंतरिक्ष मलबे की मात्रा उतनी अधिक हो जाती है कि वे एक-दूसरे से टकराते हुए और अधिक मलबा पैदा करते जाते हैं।
यही कारण है कि अंतरिक्ष के मलबे पर नजर रखी जाती है और कभी-कभी उपग्रहों को उनके रास्ते से हटाना पड़ता है।
अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबा समन्वय समिति (IADC)
इसरो ने मेघा ट्रॉपिक्स -1 की री-एंट्री के लिए संयुक्त राष्ट्र और अंतर-एजेंसी अंतरिक्ष मलबे समन्वय समिति (IADC) के दिशानिर्देशों का पालन किया। इन दिशा-निर्देशों के अनुसार किसी उपग्रह मिशन का जीवन काल समाप्त हो जाने के बाद उपग्रहों को उनकी कक्षा से हटा दिया जाना चाहिए। इसके लिए किसी सुरक्षित इम्पैक्ट क्षेत्र में नियंत्रित री-एंट्री कराई जाती है या फिर उसे नीचे उस कक्षा में पहुंचा दिया जाता है जहां कक्षीय जीवनकाल 25 वर्ष से कम होता है।
पृथ्वी की सतह से लगभग 1,000 किलोमीटर ऊपर -यानी निम्न-पृथ्वी की कक्षा में स्थित उपग्रहों के मामले में ही नियंत्रित नियंत्रित री-एंट्री संभव है।