ECONOMIC SURVEY 2022-23: वर्ष 2005-06 और 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आये हैं
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2023 को संसद में ‘आर्थिक समीक्षा 2022-23’ पेश करते हुए बताया कि भारत में 2005-06 और 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आये हैं।
गरीबी की माप मुख्य रूप से अच्छे जीवन यापन के लिए मौद्रिक साधनों की कमी के रूप में की जाती है। हालांकि, परिभाषा के अनुसार ‘गरीबी’ के व्यापक निहितार्थ होते हैं और एक ही समय में कई समस्यायों से जुड़ी होती हैं- जैसे कि खराब स्वास्थ्य एवं कुपोषण; स्वच्छता, स्वच्छ पेयजल या बिजली, शिक्षा की खराब गुणवत्ता आदि की कमी। इसलिए गरीबी की अधिक व्यापक तस्वीर बनाने के लिए बहुआयामी गरीबी (Multidimensional poverty: MPI) माप का उपयोग किया जाता है।
MPI पर UNDP की 2022 की रिपोर्ट अक्तूबर, 2022 में जारी की गई थी और इसमें 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया था। जहां तक भारत का संबंध है, 2019-21 के सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग किया गया है। इन अनुमानों के आधार पर, भारत में 16.4 प्रतिशत आबादी (2020 में 228.9 मिलियन लोग) बहुआयामी रूप से गरीब हैं जबकि अतिरिक्त 18.7 प्रतिशत को बहुआयामी गरीबी (2020 में 260.9 मिलियन लोग) के लिए वल्नरेबल के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में 2005-06 और 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आये हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राष्ट्रीय परिभाषाओं के अनुसार 2030 तक गरीबी में रहने वाले सभी उम्र के पुरूषों, महिलाओं एवं बच्चों के अनुपात को कम से कम आधा करने का एसडीजी के लक्ष्य 1.2 को उसके सभी आयामों में प्राप्त करना संभव है।
MPI पद्धति में तीन समान भारित आयामों: स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर के10 संकेतकों में प्रत्येक व्यक्ति के ओवरलैपिंग अभावों को मापना शामिल है। MPI अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1.90 डॉलर प्रतिदिन की आय को बहु आयामी गरीबी रेखा मानता है।