Rumin8: जुगाली करने वाले जानवरों से मीथेन उत्सर्जन कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का विकास
माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स ने एक ऑस्ट्रेलियाई जलवायु प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप Rumin8 में निवेश किया है, जिसका उद्देश्य गाय के डकार के मीथेन उत्सर्जन को कम करना है।
क्या है प्रौद्योगिकी?
- Rumin8 वायुमंडल में मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए गायों को खिलाने के लिए विभिन्न प्रकार के आहार पूरक विकसित कर रहा है।
- पूरक में लाल समुद्री शैवाल (red seaweed) शामिल है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह गायों में मीथेन उत्पादन में भारी कटौती करता है।
- जुगाली (Ruminant) करने वाली प्रजातियाँ चरने वाले शाकाहारी जीव हैं जो जुगाली करते हैं।
- गाय, भेड़, बकरी और भैंस जैसे जुगाली करने वाले जानवरों में एक विशेष प्रकार का पाचन तंत्र होता है जो उन्हें ऐसे भोजन को तोड़ने और पचाने की अनुमति देता है जिन्हें गैर-जुगाली करने वाली प्रजातियां पचाने में असमर्थ होंगी।
- जुगाली करने वाले जानवरों के पेट में चार कम्पार्टमेंट होते हैं, जिनमें से एक, रूमेन (जुगाली करने वाली), उन्हें आंशिक रूप से पचने वाले भोजन को स्टोर करने और इसे किण्वित (फर्मेंटेशन) करने में मदद करता है।
- Rumen, घास और अन्य वनस्पतियों के किण्वन के क्रम में मीथेन नामक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न करता है। गाय और भेड़ जैसे जुगाली करने वाले जानवर इस मीथेन को मुख्य रूप से डकार के माध्यम से छोड़ते हैं।
- डेयरी उत्पादक देशों में फार्मों पर बहुत बड़ी संख्या में मवेशियों और भेड़ों को देखते हुए, मीथेन बड़ी मात्रा में उत्सर्जित होते हैं।
- यह अनुमान लगाया गया है कि मानव गतिविधि से उत्सर्जित कुल मीथेन के 27 प्रतिशत के लिए जुगाली करनेवाला पाचन तंत्र जिम्मेदार है।
मीथेन-जलवायु परिवर्तन के लिए उत्तरदायी कारक
- मीथेन जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य उत्तरदायी कारकों में से एक है, जो पूर्व-औद्योगिक समय से 30 प्रतिशत वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है, अर्थात कार्बन डाइऑक्साइड के बाद दूसरा स्थान पर है।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 20 साल की अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन वार्मिंग करने में 80 गुना अधिक शक्तिशाली है।
- जमीनी स्तर के ओजोन (ground-level ozone) के निर्माण में भी इसका प्राथमिक योगदान है। 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, जमीनी स्तर के ओजोन के संपर्क में आने से हर साल 10 लाख अकाल मृत्यु हो सकती है।